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उदीरणाकरण- प्ररूपणा अधिकार : परिशिष्ट ४
प्रकृति नाम
अप्रत्या.
चतुष्क
प्रत्या.
चतुक
संज्व. त्रिक
संज्व. लोभ
हास्यटक
वेदत्रिक
साता वेद. असाता वेद.
उच्च गोत्र
नीच गोत्र
नरकायु
सादि
अध व
अध्रुवो | अध्रुवोदया होने दया होने
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ध्रुव
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१४१
स्वामित्व
आदि के चार गुणस्थानवर्ती
आदि के पांच गुणस्थानवर्ती
नो गुणस्थानवर्ती स्वबंध विच्छेद तक
दस गुणस्थानवर्ती
आठवें गुणस्थान तक
नौ गुणस्थानवर्ती
प्रमत्त. गुणस्थान तक के जीव
१३ वे गुणस्थान तक के यथासंभव मनुष्य, देव
नारक, तिर्यंच और नीच कुलोत्पन्न मनुष्य् चौथे गुणस्थान तक के
चरमवालिका बिना के नारक
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