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उदीरणाकरण-प्ररूपणा अधिकार : परिशिष्ट ४
१४३
प्रकृति नाम सादि . अध्रुव अनादि | ध्रुव
स्वामित्व वैक्रिय-अंगो. अध्र वो । अध्र वो- x Y x | वायुकाय बिना पूर्वोक्त
दया | दया
तैजससप्तक, x वर्णादि बीस, अगुरुलघु, निर्माण, अस्थिर, अशुभ
१२वें गुण. ध्र वो- अभव्य | सयोगि-गुणस्थान में विच्छेद दया
तक के जीव | होने से | होने से
आहारक | अध्र वो | अध्र वो- सप्तक दया । दया ।
x
x | आहारक शरीरी मुनि
वज्रऋषभ नाराच संहनन
उत्पत्ति स्थान के प्रथम समय से १३वें गुणस्थान तक के यथासंभव पर्याप्त मनुष्य, तिर्यंच पंचेन्द्रिय उत्पत्ति स्थान के प्रथम समय से सातवें गुणस्थान तक के यथा. संभव मनुष्य, तिर्यंच
मध्यम संह. चतुष्क
,
,
x
पंचेन्द्रिय
सेवार्त संह.
,
,
x
उत्पत्ति स्थान के प्रथम समय से यथासंभव सातवेंगुणस्थान तक के मनुष्य, पंचेन्द्रिय तियंच, विकलेन्द्रिय शरीरस्थ देव, युगलिक उत्तर-शरीरी संजी, कितनेक पर्याप्त मनुष्य तिर्यंच पंचेन्द्रिय
|
x
x
समचतु. संस्थान
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