Book Title: Panchsangraha Part 08
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 180
________________ उदीरणाकरण- प्ररूपणा अधिकार : परिशिष्ट ४ प्रकृतिनाम सादि अध्रुव उद्योत अध्रुवो दया उपघात परराघात तीर्थंकर नाम स्थिर, शुभ यशः कीर्ति सुस्वर अध्र-वोदया " "1 सुभग, अ वोदया "" " Jain Education International 11 11 11 अध्रुव वो बया 12 अनादि X " X १२वें गुण ध्रुवोदया अभव्य में विच्छेद होने से ध्रुव | X X For Private & Personal Use Only स्वामित्व सूक्ष्म, लब्धि-अपयप्ति तेज, वायु बिना तिर्यंच और उत्तर शरीरी देव, पंचे. तिर्यंच व मुनि १४५ शरीरस्थ सयोगि. गुणस्थान तक के सभी लब्धि पर्याप्त शरीर पर्याप्ति से पर्याप्त सयोगि. के सभी गुणस्थान तक तीर्थंकर सयोगी सयोगि. तक के केवली गुणस्थान स्वोदयवर्ती गर्भंज पर्याप्त मनुष्य, देव तिर्यंच, तेज, वायु, सूक्ष्म, लब्धि अपर्याप्त और नारक विना स्वोदयवर्ती जीव भाषा पर्याप्ति से पर्याप्त देव और स्वोदयवर्ती स www.jainelibrary.org

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