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पंचसंग्रह :
दीरणा अपनी-अपनी उत्कृष्ट स्थिति में वर्तमान उस उस आयु का उदय वाला करता है ।
उक्त आशय की संग्राहक अन्य कर्तृक गाथा इस प्रकार है
उनकोसुदीरणाए सामी सुद्धो गुणियकम्मंसो ।
इयराअ खविय कम्मो तज्जोगुद्दीरणा किलिट्ठो ॥
अर्थात् शुद्ध परिणाम वाला गुणितकर्मांश जीव उत्कृष्ट प्रदेशोदीरणा का और तत्प्रायोग्य क्लिष्टपरिणाम वाला क्षपितकर्मांश जघन्य प्रदेशोदीरणा का स्वामी है ।
इस प्रकार प्रदेशोदीरणा से संबधित विषयों का निर्देश करने के साथ उदीरणाकरण की वक्तव्यता समाप्त हुई ।
|| उदीरणाकरण समाप्त ॥
१ प्रदेशोदीरणा निरूपक प्रारूप परिशिष्ट में देखिये ।
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