Book Title: Panchsangraha Part 08
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : ८
सम्मत्तमीसगाणं से काले गहिहिइत्ति मिच्छत्तं । हासरईणं पज्जत्तगस्स सहसारदेवस्स ॥६॥ गइहुण्डुवघायाणिट्ठखगतिदुसराइणीयगोयाणं नेरइओ जेट्ठट्ठिइ मणुआ अंते अपज्जस्स ॥६२॥ कक्खडगुरुसंघयणा थीपुमसंट्ठाणतिरिगईणं च । पंचिंदिओ तिरिक्खो अट्ठमवासेट्ठवासाऊ ।।६३।। तिगपलियाउ समत्तो मणुओ मणुयगतिउसभउरलाणं । पज्जत्ता चउगइया उक्कोस सगाउयाणं तु ॥६४।। हस्सट्ठिई पज्जत्ता तन्नामा विगलजाइसुहुमाणं । थावरनिगोयएगिदियाणमिह बायरा नवरं ॥६५॥ आहारतणूपज्जत्तगो उ चउरंसमउयलहुयाणं । पत्तेयखगइपरघायतइयमुत्तीण य विसुद्धो ॥६६॥ उत्तरवेउव्विजई उज्जोयस्सायवस्स खर पुढवी। नियगगईणं भणिया तइये समएणुपुत्वीणं ॥६७।। जोगन्ते सेसाणं सुभाणमियराण चउसुवि गईसु । पज्जत्तुक्कडमिच्छेसु लद्धिहीणेसु ओहीणं ॥६८।। सुयकेवलिणो मइसुयचक्खुअचक्खुणुदीरणा मन्दा। विपुलपरमोहिगाणं मणनाणोहीदुगस्सा वि ॥६६॥ खवगम्मि विग्घकेवलसंजलणाणं सनोकसायाणं । सगसगउदीरणंते निद्दापयलाणमुवसंते ॥७॥ निद्दानिदाईणं पमत्तविरए विसुज्झमाणंमि । वेयगसम्मत्तस्स उ सगखवणोदीरणा चरिमे ॥७१॥ सम्मपडिवत्तिकाले पंचण्हवि संजमस्स चउचउसु। सम्माभिमुहो मीसे आऊण जहण्णठितिगोत्ति ॥७२॥
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