Book Title: Panchsangraha Part 08
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : ८ एगिंदागय अइहीणसत्त सण्णीसु मीसउदयंते । पवणो सट्ठिइ जहण्णगसमसत्त विउव्वियस्संते ॥३७।। चउरुवसमित्तु मोहं मिच्छं खविउं सुरोत्तमो होउ। उक्कोससंजमंते
जहण्णगाहारगदुगाणं ।।८।। खीणताणं खीणे मिच्छत्तकमेण चोद्दसण्हपि । सेसाण सजोगते भिण्णमुत्तट्ठिईगाणं ॥३९॥ अणुभागुदीरणाए घाइसण्णा य ठाणसन्ना य । सुहया विवागहेउ जोत्थ विसेसो तयं वोच्छं ॥४०॥ पुरिसित्थिविग्ध अच्चक्खुचक्खुसम्माण इगिदुठाणो वा। मणपज्जवपूसाणं वच्चासो सेस बंधसमा ॥४॥ देसोवघाइयाणं उदए देसो व होइ सव्वो य । देसोवघाइओ च्चिय अचक्खुसम्मत्तविग्घाणं ॥४२॥ घायं ठाणं च पडुच्च सव्वघाईण होई जह बंधे। अग्घाईणं ठाणं पडुच्च भणिमो विसेसोऽत्थ ॥४३॥ थावरचउ आयवउरलसत्ततिरिविगलमणुयतियगाणं । नग्गोहाइचउण्हं एगिदिउसभाइछण्हंपि ॥४४॥ तिरिमणुजोगाणं मीसगुरुयखरनर य देवपुवीणं । दुट्ठाणिओच्चिय रसो उदए उद्दीरणाए य ॥४५॥ सम्मत्तमीसगाणं असुभरसो सेसयाण बंधुत्तं । उक्कोसुदीरणा संतयंमि छट्ठाणवडिए वि ॥४६॥ मोहणीयनाणावरणं केवलियं दंसणं विरियविग्घं । संपुन्नजीवदव्वे न पज्जवेसु कुणइ पागं ।।४७॥ गुरुलहुगाणंतपएसिएसु चक्खुस्स सेसविग्घाणं । जोगेसु गहणधरणे ओहीणं रुविदम्वेसु ॥४८॥
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