Book Title: Panchsangraha Part 08
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह :८
शब्दार्थ - पुढबोआ उवणस्सइ – पृथ्वीकाय, अष्काय और वनस्पतिकाय, बायरपज्जत्त- -बादर पर्याप्त, उत्तरतणू - उत्तर वैक्रिय और आहारक शरीरी, य - और, विगल पण नियतिरिया - विकलेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय तिर्यंच, उज्जोवुद्दीरगा - उद्योतनाम के उदीरक, भणिया- कहे गये हैं ।
गाथार्थ - बादर पर्याप्त पृथ्वीकाय, अप्काय और वनस्पतिकाय तथा उत्तर वैक्रिय एवं आहारक शरीरी, विकलेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय तिर्यंच उद्योतनामकर्म के उदीरक कहे गये हैं । विशेषार्थ - बादर लब्धिपर्याप्त पृथ्वीकाय, अप्काय और ( प्रत्येक या साधारण) वनस्पतिकाय तथा उत्तर वैक्रियशरीरी, आहारकशरीरी तथा पर्याप्त विकलेन्द्रिय एवं तिर्यंच पंचेन्द्रिय ये सभी जीव उद्योत - नाम की उदीरणा के स्वामी हैं। क्योंकि इन सभी जीवों के उद्योत नाम का उदय संभव है । जब और जिनको उद्योतनाम का उदय हो तब और उनको उद्योतनाम की उदीरणा भी होती है । तथासगला सुगतिसराण पज्जत्तासंखवास देवाय । इयराण नेरइया नरतिरि सुसरस्स विगला य ||१५||
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शब्दार्थ - सगला - - समस्त इन्द्रियों वाले — पंचेन्द्रिय, सुगति - शुभ विहायोगति, सराणं - सुस्वर के, पज्जत्तासंखवास - पर्याप्त असंख्यात वर्षायुष्क, देवा – देव, य - और, इयराणं- इतर के - अशुभ विहायोगति और दुःस्वर के, नेरइया-नैरयिक, नरतिरि-- मनुष्य, तिर्यंच, सुसरस्स सुस्वर के, विगला - विकलेन्द्रिय, यऔर दुःस्वर के ।
गाथार्थ - पर्याप्त पंचेन्द्रिय, असंख्यवर्षायुष्क युगलिक और देव शुभ विहायोगति एवं सुस्वर के तथा नैरयिक और कितनेक मनुष्य, तिर्यच अशुभ विहायोगति और दुःस्वर के उदीरक हैं । विकलेन्द्रिय सुस्वर और दुःस्वर के उदीरक हैं ।
विशेषार्थ कितने ही पर्याप्त पंचेन्द्रिय तिर्यंच और मनुष्य तथा सभी असंख्यवर्षायुष्क युगलिक, सभी देव प्रशस्त विहायोगति और
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