________________
उदीरणाकरण - प्ररूपणा अधिकार : गाथा ६५.
६३
विशेषार्थ - तीन पल्योपम की आयु वाला, समस्त पर्याप्तियों से पर्याप्त और सर्वविशुद्ध परिणाम वाला मनुष्य मनुष्यगति, वज्रऋषभनाराचसंहनन और ओदारिकसप्तक के उत्कृष्ट अनुभाग की उदीरणा करता है तथा अपनी-अपनी आयु की उत्कृष्ट स्थिति में वर्तमान अर्थात् उत्कृष्ट स्थिति वाले चारों गति के पर्याप्त जीव अपनी-अपनी आयु की उत्कृष्ट उदीरणा करते हैं । किन्तु इतना विशेष समझना चाहिए कि नरक के अतिरिक्त तीन आयु की सर्वविशुद्ध परिणाम वाले और नरकायु की सर्वसंक्लिष्टपरिणामी नारक अपनी-अपनी आयु की उत्कृष्ट अनुभागोदीरणा के स्वामी हैं। तथा
हस्सटिट्ठई पज्जत्ता तन्नामा विगलजाइसुहुमाणं । थावर निगोयएगिंदियाणमिह बायरा नवरं ॥ ६५॥
→
शब्दार्थ - - हस्सटिठई - जघन्य स्थिति वाले, पज्जत्ता - पर्याप्त, तन्नामा - उस-उस नाम वाले विगलजाइसुहुभागं - विकलेन्द्रियजाति, सूक्ष्म की, थावरनिगोयए गदियाणं - स्थावर, निगोद (साधारण) एकेन्द्रिय की, इह - यहाँ, बायरा - बादर, नवरं - किन्तु ।
गाथार्थ - विकलेन्द्रियजाति, सूक्ष्म, स्थावर, साधारण और एकेन्द्रियजाति की उत्कृष्ट अनुभाग- उदीरणा जघन्य आयु वाले पर्याप्त उस-उस नाम वाले जीव करते हैं । परन्तु यहाँ स्थावर, साधारण और एकेन्द्रियजाति नाम के मात्र बादर जानना चाहिए । विशेषार्थ द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, जाति और सूक्ष्मनामकर्म के उत्कृष्ट अनुभाग की उदीरणा जघन्य आयु वाले, समस्त पर्याप्तियों से पर्याप्त और अत्यन्त संक्लिष्ट परिणामी उस-उस नाम वाले यानि कि द्वीन्द्रियजाति के द्वीन्द्रियकी, त्रीन्द्रियजाति के श्रीन्द्रियकी चतुरिन्द्रियजाति के चतुरिन्द्रियकी और सूक्ष्म नाम की सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव करते हैं। क्योंकि अल्प आयु वाला उत्कृष्ट संक्लिष्ट परिणाम वाला होता है और उत्कृष्ट संक्लेश में पाप प्रकृतियों के उत्कृष्ट अनुभाग की उदीरणा होती है, इसीलिये यहाँ अल्प आयु वाले का ग्रहण किया है । तथा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org