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पंचसंग्रह : ८
जघन्य अनुभाग की उदीरणा का स्वामी है तथा शीघ्र पर्याप्त हुआ अतिक्लिष्ट परिणामी भी अपनी पर्याप्तावस्था के चरम समय में वर्तमान वहीं सूक्ष्म एकेन्द्रिय पराघातनाम की जघन्य अनुभाग-उदीरणा करता है । आतप उद्योत नाम की जघन्य रसोदीरणा उनके उदय के योग्य-उनका उदय जिनको हो सके ऐसे शरीरपर्याप्ति से पर्याप्तत्व के प्रथम समय में वर्तमान संक्लिष्ट परिणामी पृथ्वीकायिक जव करते हैं। यद्यपि उद्योत का उदय पृथ्वीकाय के सिवाय अन्य जीवों के भी होता है, परन्तु उसके जघन्य रस की उदीरणा पृथ्वीकायिक जीव के हो होती है । तथा
छेवट्ठस्स बिइंदी बारसवासाउ मउयलहुयाण । सण्णि विसुद्धाणाहारगो य पत्त यमुरलसमं ।।७८॥
शब्दार्थ-छेवट्ठस्स-सेवात संहनन की, बिइंदो-द्वीन्द्रिय, बारसवासाउ-बारह वर्ष की आयु वाला, मउवलहुयाग-मृदु और लघु स्पर्श की, सण्णि-संज्ञी, विसुद्ध-विशुद्ध, अणाहारगो-अनाहारक, य-और, पत्त यमुरलसम-प्रत्येक की औदारिक के समान ।
गाथार्थ-बारह वर्ष की आयु वाला द्वीन्द्रिय सेवार्तसंहनन की तथा विशुद्ध परिणामी अनाहारक संज्ञी मृदु, लघु की जघन्य अनुभाग-उदीरणा करता है। प्रत्येकनाम की औदारिक के समान जानना चाहिये।
विशेषार्थ ..-बारह वर्ष की आयु वाला बारहवें वर्ष में वर्तमान द्वीन्द्रिय सेवार्तसंहनन की तथा अपनी भूमिका के अनुसार अति विशुद्ध परिणाम वाला अर्थात् जितनी उत्कृष्ट विशुद्धि संभव है वैसी विशुद्धि में वर्तमान अनाहारक संज्ञी पंचेन्द्रिय मृदु-लघु स्पर्श की जघन्य अनुभाग-उदीरणा करता है तथा प्रत्येकनाम की जघन्य अनुभाग उदीरणा का स्वामी जैसे औदारिकशरीरनाम के जघन्य रस की उदीरणा
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