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पंचसंग्रह : ८
है। उसे सम्यक्त्व से गिरते प्रारंभ होने से वह सादि है, उस स्थान को प्राप्त नहीं करने वाले के अनादि, अभव्य के ध्रव और भव्य के अध्र व है। । उक्त प्रकृतियों के शेष विकल्प-जघन्य, अजघन्य और उत्कृष्ट, सादि और अध्र व हैं। वे इस प्रकार- उक्त समस्त प्रकृतियों को जघन्य प्रदेशोदोरणा अति संक्लिष्ट परिणाम होने पर मिथ्यादृष्टि के होती है और विशुद्ध परिणाम होने पर अजघन्य होती है तथा जब संक्लिष्ट परिणाम हों तब जघन्य, इस तरह मिथ्या दृष्टि को परावर्तित क्रम से होने के कारण ये दोनों सादि-अध्र व-सांत हैं और अनुत्कृष्ट विकल्प के विचार के प्रसंग में उत्कृष्ट विकल्प का विचार पूर्व में किया जा चुका है । तथा
शेष रही अध्र वोदया एक सौ दस उत्तर प्रकृतियों की जघन्य, अजघन्य, उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशोदीरणा उन प्रकृतियों के अध्र - वोदया होने से सादि और अध्र व इस तरह दो प्रकार की है।
इस प्रकार से सादि आदि विकल्पों की प्ररूपणा जानना चाहिये। अब प्रदेशोदीरणा का स्वामी कौन है ? इसका विचार करते हैं। स्वामित्व निरूपण के दो प्रकार हैं-१ उत्कृष्ट प्रदेशोदी रणास्वामित्व
और २ जघन्य प्रदेशोदीरणास्वामित्व । उनमें से पहले उत्कृष्ट प्रदेशोदीरणास्वामित्व का निर्देश करते हैं। उत्कृष्ट प्रदेशोदीरणास्वामित्व
अणुभागुदीरणाए होंति जहन्नसामिणो जे उ । जेठ्ठपएसोदीरणसामी ते घाइकम्माणं ॥३॥ शब्दार्थ-अणुभागुदीरणाए-अनुभाग-उदीरणा के, होंति हैं, जहन्न -जघन्य, सामिणो-स्वामी, जे–जो, उ--ही, जेठ्ठपएसोदीरणसामी - उत्कृष्ट प्रदेशोदीरणा के स्वामी, ते--वे, घाइकम्मा-घाति कर्मों की ।
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