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उदीरणाकरण-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ८२
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स्कृष्ट, सेसविगप्पा-शेष विकल्प, दुविहा-दो प्रकार के, सम्वविगप्पासर्व विकल्प, सेषाणं-शेष प्रकृतियों के ।
गाथार्थ-ध्र वोदया प्रकृतियों को अनुत्कृष्ट प्रदेशोदीरणा तीन प्रकार की और मिथ्यात्व की चार प्रकार की है । शेष विकल्प दो प्रकार के हैं तथा शेष प्रकृतियों के सर्व विकल्प दो प्रकार के हैं। विशषार्थ - ध्र वोदया सैंतालीस प्रकृतियों की अनुत्कृष्ट प्रदेशोदीरणा अनादि, ध्रुव और अध्र व है । वह इस प्रकार -पांच ज्ञानावरण, पांच अंतराय और चार दर्शनावरण रूप चौदह प्रकृतियों की उत्कृष्ट प्रदेशोदोरणा अपनी-अपनी उदोरणा के पर्यवसान के समय बारहवें गुणस्थान की समयाधिक आवलिका शेष रहे तब गुणितकर्माश जीव के होती है । वह नियत काल पर्यन्त होने से सादि है । उसके अतिरिक्त अन्य समस्त अनुत्कृष्ट प्रदेशोदीरणा है और वह अनादिकाल से प्रवर्तमान होने से अनादि है। अभव्यापेक्षा ध्रुव और भव्यापेक्षा अध्र व सांत है । तथा
तैजससप्तक, वर्णादि वीस, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, अगुरुलघु और निर्माण इन तेतीस प्रकृतियों की उत्कृष्ट प्रदेशोदीरणा गुणितकांश सयोगिकेवली के चरम समय में होती है इसलिये सादि-सांत है । क्योंकि वह समय मात्र ही होती है। उसके अतिरिक्त अन्य सभी अनुत्कृष्ट है और वह अनादिकाल से प्रवर्तमान होने से अनादि है । अभव्य की अपेक्षा ध्र व और भव्य की अपेक्षा अध्र व है। ___ 'मिच्छस्स चउव्विहा' अर्थात् मिथ्यात्व की अनुत्कृष्ट प्रदेशोदीरणा सादि, अनादि, ध्रव और अध्र व इस तरह चार प्रकार की है। वह इस प्रकार-संयम के साथ ही सम्यक्त्व को प्राप्त करने के उन्मूख मिथ्या दृष्टि को उत्कृष्ट प्रदेशोदीरणा होती है और उसको नियत काल पर्यन्त होने से सादि-सांत है। उसके अतिरिक्त शेष सब अनुत्कृष्ट
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