________________
११७
उदीरणाकरण-रूपणा अधिकार : गाथा ८३
___ गाथार्थ-घातिकर्मों की जघन्य अनुभागउदीरणा के जो स्वामी हैं, वे ही उन घातिकर्मों की उत्कृष्ट प्रदेशोदीरणा के स्वामी हैं।
विशेषार्थ-पूर्व में जो जघन्य अनुभाग-उदीरणा के प्रसंग में घातिकर्मों की जघन्य अनुभागउदीरणा के स्वामी बताये हैं वे ही घातिको की उत्कृष्ट प्रदेशोदीरणा के स्वामी जानना चाहिये । जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है ---- ___ अवधिज्ञानावरण के सिवाय चार ज्ञानावरण. चक्षु, अचक्षु और केवल दशनावरण इन सात प्रकृतियों की क्षीणमोहगुणस्थान की समयाधिक आवलिका शेष रहे तब गुणितकर्माश जीव के तथा अवधिज्ञानावरण, अवधिदर्शनावरण की क्षीणमोहगुणस्थान की समयाधिक आवलिका शेष रहे तब अवधिलब्धिरहित गुणितकर्मांश के उत्कृष्ट प्रदेशोदोरणा होती है । इस समय गुणितकर्मांश समय प्रमाण जघन्य स्थिति, जघन्य अनुभाग और उत्कृष्ट प्रदेश की उदीरणा करता है। बारहवें गुणस्थान की समयाधिक आवलिका प्रमाण स्थिति शेष रहे तब उक्त प्रकृतियों की भी उतनी ही स्थिति सत्ता में शेष रहती है। अंतिम आवलिका उदयावलिका होने से उसके ऊपर की समय प्रमाण स्थिति और उस स्थितिस्थान में के जघन्य रसयुक्त अधिक से अधिक दलिकों को गुणितकर्माश जीव उदीरता है ।
बारहवें गुणस्थान की समयाधिक आवलिका शेष स्थिति रहे तब प्रत्येक के जघन्य स्थिति की उदीरणा तो होती है, परन्तु प्रत्येक के जघन्य रस की ही उदीरणा होती तो जघन्य रस की उदीरणा के अधिकार में उत्कृष्ट श्र तज्ञानी के या विपुलमति मनपर्यायज्ञानी के इस तरह के विशेषण जोड़कर जघन्य अनुभागोदीरणा न कहते । परन्तु सामान्य से यह कहा जाता कि बारहवें गुणस्थान की समयाधिक आवलिका शेष रहे तब
(शेष अगले पृष्ठ पर) Jain Education International For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org|