Book Title: Panchsangraha Part 08
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह :
गाथार्थ-सम्यक्त्व की प्राप्ति के समय में पाँच की और संयम की प्राप्तिकाल में चार-चार की, जघन्य अनुभाग-उदीरणा होती है । सम्यक्त्व की प्राप्ति के अभिमुख हुआ मिश्रमोहनीय की और जघन्य आयुस्थिति वाला आयु की जघन्य अनुभाग-उदीरणा करता है। विशेषार्थ-सम्यक्त्व तथा अपि शब्द से संयम इन दोनों की प्राप्तिकाल में अर्थात् एक साथ सम्यक्त्व और संयम प्राप्त करे तब यानि मिथ्यात्वगुणस्थान से हो सम्यक्त्व के साथ सर्वविरति चारित्र प्राप्त करने वाले जीव के मिथ्यात्वगुणस्थान के चरम समय में अत्यन्त विशुद्ध परिणाम होने से मिथ्यात्व एवं अनन्तानुबंधीकषायचतुष्क इन पाँच प्रकृतियों के जघन्य अनुभाग की उदीरणा होती है । तथा
संयम की प्रतिपत्तिकाल में चार-चार प्रकृतियों के जघन्य अनुभाग की उदीरणा होती है । अर्थात् अविरतसम्यग्दृष्टि से सर्वविरतिचारित्र प्राप्त करने वाले के चतुर्थ गुणस्थान के अन्त में अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया और लोभ के जघन्य अनुभाग की, देशविरतिगुणस्थान से सर्वविरति प्राप्त करने वाले के देशविरतिगुणस्थान के अन्त में तीव्र विशुद्धि होने से प्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ के जघन्य अनुभाग की उदीरणा होती है । तथा
१ पहले गुणस्थान से सम्यक्त्व प्राप्त कर चौथे, सम्यक्त्व के साथ ही देश
विरति प्राप्त कर पाँचवें और सम्यक्त्व के साथ सर्वविरति प्राप्त कर बीच के गुणस्थानों का स्पर्श किये बिना ही सर्व विरति गुणस्थान में जाया जा सकता है। पहले गुणस्थान से छठे गुणस्थान में जाने वाले के तीव्र विशुद्धि होती है, जिससे पहले के अन्त में उपर्युक्त पाँच प्रकृतियों की जघन्य अनुभाग उदीरणा हो सकती है। यहाँ क्षायोपशमिक सम्यक्त्व ग्रहण करना चाहिए।
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