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पंचसंग्रह : ८
जनन्य आयु वाले समस्त पर्याप्तियों से पर्याप्त, तीव्र संक्लेशपरिणामी बादर एकेन्द्रिय जीव स्थावरनाम, साधारणनाम, और एकेन्द्रिय जातिनामकर्म के उत्कृष्ट अनुभाग की उदीरणा करते हैं । उसमें से स्थावरनाम की स्थावर, साधारणनाम की बादर साधारण एकेन्द्रिय और एकेन्द्रियजातिनाम की दोनों उदीरणा करते हैं । सूक्ष्म की अपेक्षा बादर को संक्लेश अधिक होता है, इसलिए बादर का ग्रहण किया है । तथा
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आहारतणू पज्जत्तगो उ चउरंसमउयलहुयाणं । पत्तेयखगइपरघायतइयमुत्तीण य विसुद्धो ॥ ६६ ॥
शब्दार्थ - आहारत गुपज्जत्तगो-पर्याप्त आहारकशरीरी, उ-- और, चउरस – समचतुरस्र संस्थान, मउयलहुयाणं - मृदु और लघु स्पर्श का, पत्तेयप्रत्येक नाम, खाइ - प्रशस्त विहायोगति, परघाय- - पराघात, तइयमुत्तीण -- तीसरे शरीर (आहारक सप्तक), य-और, विसुद्ध - विशुद्ध ।
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गाथार्थ - समचतुरस्रसंस्थान, मृदु, लघु, स्पर्श, प्रत्येकनाम, प्रशस्तविहायोगति, पराघात और आहारकसप्तक के उत्कृष्ट अनुभाग की उदीरणा विशुद्ध परिणामी पर्याप्त आहारकशरीरी करता है ।
विशेषार्थ - समचतुरस्रसंस्थान, मृदु, लघु स्पर्श नाम, प्रत्येक, प्रशस्तविहायोगति, पराघात और आहारकसप्तक इन तेरह प्रकृतियों के उत्कृष्ट अनभाग की उदीरणा का स्वामी आहारकशरीरी पर्याप्त यानी आहारकशरीर की समस्त पर्याप्तियों से पर्याप्त और सर्व विशुद्धिसंपन्न आहारकशरीरी संयत' करता है । तथा
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१ आहारकशरीर की चौदह पूर्वधर संयत विकुर्वणा करता है । परन्तु यहाँ सर्वविशुद्ध का संकेत किया है, इनसे ऐसा प्रतीत होता है कि छठे गुणस्थान में शरीर की त्रिकुर्वगाकर सातवें में जाता हुआ अथवा सातवें में गया अप्रमत्त उक्त प्रकृति की उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा का स्वामी हो ।
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