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कक्खडगुरुसंघयणा थीपुमसंट्ठाणतिरिगईणं च ।
पंचिदिओ
तिरिक्खो
अट्ठमवासेदृवासाऊ ||६३॥
शब्दार्थ - कक्खडगुरुसंघयणा - कर्कश, गुरु स्पर्श, पांच संहनन, श्रीपुमसंट्ठाण तिरिगईण— स्त्रीवेद, पुरुषवेद, (चार) संस्थान, तिर्यंचगति के, चऔर पंचिदिओ - पंचेन्द्रिय, तिरिक्खो - तिर्यंच अट्ठमवा सेट्ठवासाऊ - आठवें वर्ष में वर्तमान और आठ वर्ष की आयु वाला ।
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पंचसंग्रह ८
गाथार्थ - कर्कश, गुरु स्पर्श, पांच संहनन, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, चार संस्थान और तिर्यंचगतिनाम के उत्कृष्ट अनुभाग की उदीरणा का स्वामी आठवें वर्ष में वर्तमान आठ वर्ष की आयु वाला तिर्यंच है ।
विशेषार्थ - कर्कश और गुरु स्पर्श, पहले के सिवाय शेष पांच संहनन, स्त्री और पुरुषवेद, आदि और अंत को छोड़कर शेष मध्य के चार संस्थान एवं तिर्यंचगतिनाम, इन चौदह प्रकृतियों के उत्कृष्ट अनुभाग की उदीरणा का स्वामी आठ वर्ष की आयु वाला और आठवें वर्ष में वर्तमान संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच है । तथा
तिगपलियाउ समत्तो मणुओ मणुयगतिउसभउरलाणं । पज्जत्ता चउगइया उक्कोस सगाउयाणं तु ॥ ६४॥
शब्दार्थ - तिगपलियाउ-तीन पल्योपम की आयु वाला, समतो-पर्याप्त, मणुओ - मनुष्य, मणुयगति उसमउरलाणं - मनुष्यगति, वज्रऋषभनाराचसंहनन, औदारिकपतक के पज्जत्ता - पर्याप्त चउगइया - चतुर्गति के जीव, उक्कोस - उत्कृष्ट, सगाउयाणं - अपनी आयु की, तु—और ।
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गाथार्थ - तीन पत्योपम की आयु वाला पर्याप्त मनुष्य मनुष्यगति, वज्रऋषभनाराचसंहनन, औदारिकसप्तक के उत्कृष्ट अनुभाग की उदीरणा का स्वामी है तथा चारों गति के पर्याप्त अपनी-अपनी आयु की उत्कृष्ट अनुभाग- उदीरणा करते हैं ।
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