Book Title: Panchsangraha Part 08
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : ८
शेष देशघाति प्रकृतियों का बंध में जिस तरह चारों प्रकार का रस कहा है, उसी तरह अनुभाग-उदीरणा में भी चारों प्रकार का रस जानना चाहिये। देशघाति प्रकृतियों का घातित्व विषयक विशेष
देसोवघाइयाणं उदए देसो व होइ सव्वो य । देसोवघाइओ च्चिय अचक्खुसम्मत्तविग्धाणं ॥४२॥
शब्दार्थ- देसोवघाइयागंदेशघाति प्रकृतियों की, उदए --उदय-- उदीरणा में, देसो-देशधाति, व-अथवा, होइ-होता है, सवो—सर्वघाति, य--और, देसोवघाइओ च्चिय-देशघाति ही, अचक्खुसम्मत्तविग्घागंअचक्षुदर्शनावरण, सम्यक्त्वमोहनीय और अंतराय का।
गाथार्थ-देशघाति प्रकृतियों का उदय-उदीरणा में देशघाति अथवा सर्वघाति रस होता है तथा अचक्षुदर्शनावरण, सम्यक्त्वमोहनीय और अंतराय का देशघाती ही रस उदय-उदीरणा में होता है।
विशेषार्थ-पूर्व गाथा में जैसे यह कहा गया है कि किस प्रकार के रस की उदोरणा होती है, उसी प्रकार इस गाथा में यह स्पष्ट करते हैं कि वह रस कैसा होता है-घाति या अघाति ? देशघाति-ज्ञानावरणचतुष्क, चक्षुदर्शनावरण, अवधिदर्शनावरण, नवनोकषाय और संज्वलनचतुष्करूप- प्रकृतियों का उदीरणारूप उदय में यानि उदारणा में देशधाति रस होता है, उसी प्रकार सर्वघाति रस भी होता है किन्तु अचक्षुदर्शनावरण, सम्यक्त्वमोहनीय और अंतरायपंचक के रस की उदीरणा में देशघाति रस ही होता है, किन्तु सर्वघाति रस नहीं होता है । तथा
घायं ठाणं च पडुच्च सव्वघाईण होई जह बंधे । अग्घाईणं ठाणं पडुच्च भणिमो विसेसोऽत्थ ॥४३॥
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