Book Title: Panchsangraha Part 08
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह :
चारों आयु की भी उन-उनकी उदीरणा के अन्त में समयाधिक आवलिका प्रमाण स्थिति सत्ता में शेष रहे, तब जघन्य स्थिति-उदीरणा समझना चाहिए ।
स्थिति- उदीरणा के सम्बन्ध में विशेष वक्तव्य इस प्रकार है
स्थिति- उदीरणा में कितने ही स्थान पर ऐसा आया है कि बंधावलिका के जाने के बाद उदयवलिका से ऊपर की स्थिति पतद्ग्रह प्रकृति की उदयावलिका से ऊपर संक्रमित होती है । ऐसा क्यों होता है ? तो उसका कारण यह है कि जिसकी स्थिति संक्रमित होती है, उसकी उदयावलिका से ऊपर की स्थिति संक्रमित होती है । अन्य प्रकृतिनयनसंक्रम में स्थान का परिवर्तन नही होने से जिसमें संक्रमित होती है, उसकी उदयावलिका से ऊपर संक्रमित होती है, यह कहा है । यानि उस उदयावलिका को मिलाने पर एक आवलिकान्यून उसकी उत्कृष्ट सत्ता होती है । जैसे कि नरकगति की उत्कृष्ट स्थिति बांधे, जिस समय उसकी बंधावलिका पूर्ण हो, उस समय देवगति बांधना प्रारम्भ करे, बध्यमान देवगति में उदयावलिका से ऊपर का नरकगति का दलिक संक्रमित होता है । उदयावलिका से ऊपर का नरकगति का दलिक देवगति की उदयावलिका से ऊपर संक्रमित हो, यानि उस उदयावलिका को मिलाने पर एक आवलिकान्यून बीस कोडाकोडी सागर प्रमाण देवगति की उत्कृष्ट स्थिति सत्ता में होती है तथा उसकी संक्रमावलिका के जाने के बाद उदयावलिका से ऊपर का दलिक अन्यत्र संक्रमित होता है । इसी प्रकार अन्यत्र भी समझना चाहिए ।
इस प्रकार से स्थिति उदीरणा का निरूपण जानना चाहिए ।' अब क्रमप्राप्त अनुभाग- उदीरणा की प्ररूपणा प्रारम्भ करते हैं । अनुभाग- उदीरणा
अणुभागुदीरणाए घासण्णा य ठाणसन्ना य । सुहया विवागहेउ जोत्थ विसेसो तयं वोच्छं ॥४०॥
१ स्थिति उदीरणा विषयक विवरण का प्रारूप परिशिष्ट में देखिये ।
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