Book Title: Panchsangraha Part 08
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
View full book text
________________
३८
पंचसंग्रह : ८ कोई एक जीव सम्यक्त्व गुणस्थान में अन्तमुहूर्त रहकर मिश्रगुणस्थान प्राप्त करे, वहाँ मिश्रमोहनीय का अनुभव करते उदयावलिका से ऊपर की मिश्रमोहनीय की दो अन्तमुहूर्त न्यून सत्तर कोडाकोडी सागरोपम प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति उदीरणायोग्य होती है। तथा
ज्ञानावरणपंचक, अंतरायपंचक, दर्शनावरणचतुष्क, तैजससप्तक वर्णादि बीस, निर्माण, अस्थिर, अशुभ, अगुरुलघु, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, दुःस्वर, दुर्भग, अनादेय, अयशः. कीर्ति, वैक्रियसप्तक, पंचेन्द्रियजाति, हुण्डकसंस्थान, उपघात, पराघात, उच्छ वास, असातावेदनीय, उद्योत, अशुभ विहायोगति और नीचगोत्र रूप छियासी उदयबंधोत्कृष्टा प्रकृतियों की आवलिकाद्विकन्यून उत्कृष्ट स्थिति उदी रणायोग्य होती है ।
वह इस प्रकार-उपयुक्त प्रकृतियों का उत्कृष्ट स्थितिबंध करके बंधावलिका जाने के बाद उदयावलिका से ऊपर की समस्त स्थिति की उदीरणा की जाती है। इसलिये उदयबंधोत्कृष्टा प्रकृतियों की आवलिकाद्विकन्यून अपनी-अपनी उत्कृष्ट स्थिति उदोरणायोग्य कही है।
उपर्युक्त प्रकृतियों की उदीरणायोग्य स्थिति कहकर अब अद्धाच्छेद बतलाते हैं । जितनी स्थिति की उदीरणा न हो उतनी उदीरणा के
१ जैसे उत्कृष्ट स्थिति का बंधकर अत्तम हर्त मिथ्यात्व में रहने के बाद
सम्यक्त्व प्राप्त करता है, उसी प्रकार सम्यक्त्व प्राप्त करने के बाद अन्तमुहर्त सम्यक्त्व' गुणस्थान में रहने के बाद ही मिश्रगुणस्थान प्राप्त क ता है । दर्शनमोहनीयत्रिक की उत्कृष्ट स्थिति की सत्ता पंचम आदि गुणस्थानों
में नहीं होती। २ यहाँ प्रत्येक स्थान पर उदयावलिका से ऊपर की स्थिति की उदीरणा होती
है, परन्तु उदयावलिका को अन्तर्मुहूर्त में मिला दिये जाने से अन्तर्मुहूर्तन्यून कहा है । किन्तु अन्तमुहूर्त उतना बड़ा लेना चाहिये । जिन प्रकृतियों का उदय हो और उस समय उत्कृष्ट स्थिति का बंध हो तो वे उदयबंधोत्कृष्टा प्रकृतियां कहलाती हैं ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org