________________
निर्मुक्तिपंचक कलह, ५ आसक्ति, ६. प्रमाद, ७. आलस्य :
मनुष्य जन्म की दुर्लभता के दश दृष्टान्त भी आध्यात्मिक चेतना को झकझोरने वाले हैं। ये दृष्टान्त न केवल जीवन की दुर्लभता का ज्ञान कराते हैं वरन् सार्धक एवं आध्यात्मिक जीवन जीने की प्रेरणा भी देते हैं। मूलत: ये दृष्टान्त आवश्यकनियुक्ति में उल्लिखित हैं लेकिन प्रासंगिक होने के कारण यहां भी इनकी पुनरुक्ति हुई है। त्रिवर्ग
उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने एवं उच्चतर आदर्शों को प्राप्त करने के लिए भारतीय मनीषियों ने चार पुरुषार्थों की कल्पना की, उन्हें चतुर्वर्ग भी कहा जाता है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष—ये चार पुरुषार्थ भारतीय संस्कृति के प्राण तस्व रहे हैं। यद्यपि निर्मुक्तिकार निवृत्तिपरक धर्म-परम्परा का वहन करने वाले आचार्य थे पर उन्होंने अपने साहित्य में धर्म और मोक्ष के साथ अर्थ और काम का भी विशद विवेचन किया है। आचार्य वात्स्यायन ने कामसूत्र के प्रारम्भ में धर्म, अर्थ और काम को नमस्कार किया है। ऐसा संभव लगता है कि नियुक्तिकार के समय तक भी त्रिवर्ग धर्म, अर्थ और काम का ही प्रचलन रहा। मोक्ष को इसके साथ नहीं जोडा गया। मोक्ष को न जोडने का एक कारण यह भी रहा कि मोक्ष की प्राप्ति सबके लिए संभव नहीं थी। बाद के आचार्यों ने इनमें मोक्ष को जोड़कर चार पुरुषार्थों की प्रस्थापना की और इनको साध्य और साधन के रूप में प्रतिष्ठित किया। धर्म और अर्थ को साधन के रूप में तथा मोक्ष और काम को साध्य के रूप में अंगीकार किया। धर्म का साध्य है मोक्ष और अर्थ का साध्य है काम।
भारतीय मनीषियों ने धर्म को जीवन का नियामक सिद्धन्त, अर्थ के जीवन के भौतिक साधन का आधार, काम को जीवन की उचित कामनाओं की तृप्ति तथा मोक्ष को सर्व बंधनों से मुक्ति के रूप में स्वीकार किया। नियुक्तिकार ने त्रिवर्ग-धर्म, अर्थ और काम का व्यवस्थित विवेचन किया है तथा मोक्ष को धर्म का फल स्वीकार किया है। कुछ धार्मिक परम्पराओं में धर्म, अर्थ और काम को विरोधी तत्त्व के रूप में स्वीकार किया गया लेकिन नियुक्तिकार के अनुसार धर्म, अर्थ और काम -ये तीनों युगपद् विरोधी से लगते हैं परन्तु जिनेश्वर भगवान् के वचनों में अवतीर्ण होकर ये अविरोधी बन जाते हैं। आचार्य वात्स्यायन ने इसी बात को प्रकारान्तर से कहा—'धर्मानुकूलो अर्थकामी सेवेत' अर्थात् धर्म के अनुकूल अर्थ और काम का सेवन करना चाहिए। कौटिलीय अर्थशास्त्र के अनुसार व्यक्ति भले ही ऐश्वर्य प्राप्त करे, धन संचय करे, उसका उपभोग करे पर वह धर्मानुकूल हो। त्रिवर्ग में से किसी एक का असंतुलित उपभोग; बड़ा दुःखदायी होता है। कहने का तात्पर्य है व्यक्ति धर्म, अर्थ और काम.— इन तीनों का उपभोग इस प्रकार करे कि ये तीनों एक दूसरे से संबद्ध भी रहें और परस्पर विघ्नकारी भी न हों। भारतीय ऋषियों ने मोक्ष को परम पुरुषार्थ के रूप में स्वीकार किया है। नियुक्ति-साहित्य में मोक्ष का वर्णन विकीर्ण रूप में अनेक स्थानों पर मिलता है। यहां संक्षेप में नियुक्तिगत त्रिवर्ग-धर्म,
१ कामसूत्र १/१/१: धमकामेमो नमः २ दाने २४१। ३ दशनि २४०।
४. कौटि १/३/६/३:
धर्माविरोधेन काम सेवेत । न निःसुख: स्यात् । सनं डा त्रिवर्गमन्योन्यानुबन्धनम्। एको हत्यासेवितो धमर्थकमानामात्मानमितरौ छ पीडयति ।