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मनुष्य के मन में नरक को स्वर्ग एव स्वर्ग को नरक बनाने का सामर्थ्य है | उत्तम मन्त्र द्वारा वह नरक को स्वर्ग बना सकता है | श्रद्धा एव विश्वासपूर्वक उत्तम मन्त्र का जाप करने वाले सदा सुरक्षित है । नाम एव नमस्कार मन्त्र द्वारा इष्ट का का प्रसाद एव पूर्ण की प्राप्ति होती है । इष्ट का नाम सभी विपदाओं में से जीव को पार उतारने वाला सर्वोत्तम साधन है । इष्ट का नमस्कार सभी पापवृत्ति एव पापप्रवृत्ति का समुल विनाश करता है |
इष्ट तत्त्व की अचिन्त्य शक्ति
धम मात्र का ध्येय आत्म ज्ञान है । मन्त्र के ध्यान मात्र से वह सिद्ध होता है । मन्त्र का रटन एक चोर हृदय कर मिलन, ईर्ष्यासूयादि को साफ करवाने का कार्य करता है, दूसरी ओर तन, मन, धन की श्राधि-व्याधि एवं उपाधियो को टाल देता है ।
शरीर की व्याधि असाध्य हो एवं कभी न टले तो भी मन की शान्ति एव बाह्य व्याधि मात्र को समता से सहन करने की शक्ति तो वह देता ही है । वह यह कार्य कैसे सम्पोदित करता है यह प्रश्न यहाँ उचित नहीं है । कितने ही प्रश्न एव उनके उत्तर बुद्धि से या बुद्धि को दे दिए जाय ऐसे होते नही । हृदय की बात हृदय ही जान सकता है | श्रद्धा की बात श्रद्धालु ही समझ सकता है । परमात्म तत्त्व एवं उसकी शक्ति को न मानने वाले के लिए मन याने स्वयं का ग्रह ही परमात्मा का स्थान लेता है । सर्व समर्थ की शरण लिए बिना ग्रह कभी टलता नही एव जहाँ तक यह नही टलता शान्ति का अनुभव श्राकाशकुसुमवत् होता है ।
पू० उपाध्याय यशोविजयजी महाराज श्री ने ग्रध्यात्मसार ग्रन्थ के अनुभवाधिकार में कहा है कि