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अशुभ कर्म का क्षय एव शुभ कर्म का बन्ध करवाकर परम्परानुसार मुक्ति-सुख को प्राप्त करवाता है । प्रत. यह नवकार मन्त्र सर्व शुभो मे उत्कृष्ट शुभ, सर्व मगलो मे उत्कृष्ट मगल भी कहलाता है |
मोक्ष मार्ग में पुष्टावलम्बन
नवकार मन्त्र जीव को स्वय की उन्नति सधवाने हेतु पुष्टावलम्बन है । अलक्ष्य को साधने हेतु लक्ष्य का अवलम्बन लेना ही सालम्बन ध्यान है । आलम्वन द्वारा ध्येय मे उपयोग की एकता होती है ।
उपयोग का अर्थ है बोध रूप व्यापार एव एकता अर्थात् सजातीय ज्ञान की धारा । निमित्त कारण दो प्रकार के हैं-- एक पुष्ट एव दूसरे अपुष्ट । पुष्ट निमित्त अर्थात् जो कार्य सिद्ध करना हो वह कार्य अथवा साध्य जिसमे मार्ग मे सिद्धत्व साध्य है जो श्री अरिहत सिद्धादि परमेष्ठियो मे है । अत उनका निमित्त पुष्ट निमित्त है, उनका आलम्बन पुष्ट आलम्बन है ।
विद्यमान हो । मोक्ष
पानी मे सुगन्ध रूप कार्य उत्पन्न करना हो तो पुष्प पुष्टनिमित्त हैं क्योकि फूलों मे सुगन्ध निहित है । पुष्ट निमित्तो का श्रालम्बन स्मरण, विचिन्तन एव ध्यान द्वारा हो सकता है । पुष्ट निमित्तो के स्मरण को शास्त्रो मे मोक्षमार्ग का प्रारण कहा गया है । सर्व सिद्धियो को प्रदान करवाने मे स्मरण श्रचिन्त्य चिन्तामरिण के समान गिना जाता है । निमित्तो का स्मृति रूपी चिन्तामरिण रत्न प्रशस्त ध्यानादि भावो को प्राप्त करवाकर शुभ फलो को अभिव्यक्त करता है । पुष्ट निमित्तो के स्मरण से इन्द्रियो का बाह्य विषयों से प्रत्याहार होता है । इस प्रकार चित्त से विशेष प्रकार से स्थिरतापूर्वक चिन्तन ही विचिन्तन है । चित्त का विजातीय वृत्ति से प्रस्पृष्ट सजातीय वृत्ति का