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तथा फिर उसकी हितकारिणी श्राज्ञा को जीवन मे जीवित रखने का बल प्राप्त होता है ।
नमस्कार सभी धर्मों का मूल
जो वालक अपने गुरुजनो के प्रति नम्र तथा पराधीन वृत्ति वाला होता है वही उनके श्रादेशो का अनुसरण कर अपने विकास को साध सकता है । प्रत. नमस्कार विकास का परम साधन है । वचपन से ही बालक को माता-पिता को प्रणामादि करना सिखाया हो तो उससे उसके मन पर उनके प्रति सम्मान का भाव टिका रहता है। इसी प्रकार लोक या परलोक मे नमस्कार ही प्रथम धर्म है । हम जव तक पूर्ण ज्ञानी नही बनते हैं तब तक पूर्ण ज्ञानियों को उनके स्वरूप को तथा उनके उपदेश को समझने वाले अधिक ज्ञानी, गुरु आदि के श्राश्रय मे रहना ही चाहिए और इस हेतु नमस्कार का बार-वार आश्रय लेना ही पडता है । वार-बार का किया हुआ नमस्कार मन पर देव गुरु की अधीनता तथा श्राश्रितता का भाव सदा जाग्रत रखता है तथा उनके हितोपदेश के प्रति श्रादर - बहुमान का भाव टिका के रखता है । इसीलिए नमस्कार को सबसे प्रथम धर्म कहा जाता है तथा दूसरे सभी धर्मो का मूल भी है ऐसा स्पष्टरूप से समझा जा सकता है ।
मन्त्र के अनेक अर्थ
नमस्कार मन्त्र है | मन्त्र के अनेक अर्थ हैं । मन्त्र का अर्थ है गुप्त भाषण | मन्त्र का अर्थ है आमन्त्रण, जिसे प्रणाम किया जा रहा है उसे हृदय प्रदेश मे पदार्पण करने हेतु श्रामन्त्रण | मन्त्र का अर्थ है मन का रक्षरण । मन्त्र के वर्गों से मनका सकल्प विकल्प से रक्षण होता है । मन्त्र का अर्थ है विशिष्ट मनन