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भी है। गुणपर्याय का आधार द्रव्य है अत आत्मद्रव्य रूप नमस्कार ही ससारसागर मे द्वीप, ससार अटवी मे त्राण, संसार कारागार मे शरण, ससार अरण्य मे गति, ससार कूप मे 'आधार, अवलम्बन एव प्रतिष्ठा है ।
सम्यग्दृष्टि जीवों का त्राण . धर्म के दो प्रकार है-एक श्रुतधर्म तथा दूसरा चारित्रधर्म । श्रुतधर्म का प्रतीक नवकार है। चारित्रधर्म का प्रतीक श्री सामायिकसूत्र है। एक के ६८ अक्षर हैं, दूसरे के ८६ अक्षर है । देशविरति सामायिक सूत्र के ७६ अक्षर है। .. नवकार देवतत्त्व, गुस्तत्त्व तथा धर्मतत्त्व रूप तत्त्व-त्रयी को बताने वाला है इसीलिए नवकार मे नवतत्त्व का ज्ञान है । देवतत्त्व मोक्षस्वरूप है, गुरुतत्त्व मोक्षमार्ग रूप है. तथा धर्मतत्त्व मोक्ष को प्राप्त तथा मोक्षमार्ग पर स्थित पुरुषो का बहुमानस्वरूप होने से धर्मतत्त्व रूप है। देवतत्त्व के बहुमान से ससार को हेयता एव मोक्ष की उपादेयता का ज्ञान होता है, गुरुतत्त्व के बहुमान से सवर-निर्जरारूप तत्त्व की उपादेयता तथा प्रास्रव-बन्ध तत्त्व को हेयता का ज्ञान होता है। धर्मतत्त्व के बहुमान से पुण्यतत्त्व की उपादेयता तथा पापतत्त्व की हेयता का ज्ञान होता है । समग्र नवकार जीवतत्त्व की उपादेयता का तथा अजीवतत्त्व की हेयता का बोध कराता है। इस प्रकार नवकार मे नवो तत्त्वो का हेयोपादेयता सहित बोध होता है।
, नवकार मे हेय तत्त्वो की हेयता का ज्ञान तथा उपादेय तत्त्वो की उपादेयता का ज्ञान 'इसी प्रकार होता है। पाप, आस्रव तथा बन्ध हेय है, पुण्यानुवधीपुण्य, सवर, निर्जरा तथा मोक्ष उपादेय है; ऐसा सम्यक् बोध नवकार के ज्ञान से होने से सम्यग् दृष्टि जीवो के लिए वह प्राणरूप है।