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जाते हैं। इस दृष्टि से "तम्यन्तेऽस्मै कामाः" वाला उपनिपद् वाक्य भी संगत होता है। नमो' पद द्वारा परमात्मा की उपासना होती है। यह बात दूसरी भी अनेक रीतियो से संगत होती है।
नमो अरिहताणं पद मे नमस्कार का स्वामी निश्चयदृष्टि से जैसे नमस्कार करने वाला बनता है वैसे ही व्यवहारनय से नमस्कार का स्वामित्व नमस्कार्य श्री अरिहंत परमात्मा का है। इसीलिए नमस्कार से अभिन्न परमात्मा ही 'नमो' पद से उपास्य बनते है। इस प्रकार पाचों परमेष्ठि 'नमो' पद से उपास्य बनते है।
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द्रव्यगुणपर्याय से नमस्कार
नमस्कार प्रात्मगुण है एव "गुण और गुणी में अभेद है" इस न्याय से नमस्कार आत्मद्रव्य भी है। द्रव्य पर्याय का प्राधार है । इस दृष्टि से नमस्कार आत्मद्रव्य का शुभपर्याय है। इस प्रकार नमस्कार रूपी आत्मद्रव्य, नमस्कार रूपी आत्मगुण एव नमस्कार रूपी आत्मपर्याय द्वीप, त्राण, शरण, गति एवं प्राधार है । अर्थात् नमस्कार ससार समुद्र मे द्वीप है, अनर्थमात्र का घातक है, भवभय का त्राता है, चारो गति के जीवों का आश्रय स्थान एव भव रूपी कूप मे पड़ते हुए जीवो का पालम्वन भूत बनता है। आत्मद्रव्य द्वीप है, आत्मगुरण, त्राण, शरण एव गति है तथा आत्मपर्याय भवकूप मे डूबते जीवो के लिए आधार है । अथवा द्रव्य, गुण एव पर्याय से आत्मा. हो नमस्कार रूप है। इसीलिए अन्तत गुणपर्याय के आधारभूत प्रात्मद्रव्य ही द्वीप, त्राण, शरण, गति एव प्राधार हैं। ___ सहभावी पर्याय को गुरग कहते हैं, क्रमभावी अवस्था को पर्याय कहते हैं। नमस्कार ग्रात्म-गुरग भी है एव प्रात्म-पर्याय