Book Title: Mahamantra ki Anupreksha
Author(s): Bhadrankarvijay
Publisher: Mangal Prakashan Mandir

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Page 198
________________ ५८ शान्ति के लिए है तथा यम बाह्य शान्ति के लिए है । नवकार से बाह्य-प्रान्तर सम्बन्ध सुधरते है । इष्टदेवता को नमस्कार एवं परम्पर फल इष्टदेवता को नमस्कार किए बिना कोई भी श्रात्मा श्रुतज्ञान का पार नही पा सकता है । यह पचमगल इष्टदेवता को नमस्कार स्वरूप है । इसलिए श्रुतज्ञान का पार पाने के इच्छुक को निरन्तर उसका आलम्वन लेना चाहिए - - ऐसा श्री महानिशीथसूत्र मे प्रतिपादित किया हुआ है । श्रुतज्ञान से जीवादि तत्त्वो का बोध होता है । इससे दया की लगन उत्पन्न होती है । सर्व जीव मेरी श्रात्मा के समान हैंऐसी स्थिरबुद्धि उत्पन्न होने से जीवो की सघट्टना, परितापनादि पीडा का परिहार होता है । इमसे आस्रव द्वार का विवर्जन होता है, सवर भाव की प्राप्ति होती है एव अत्यन्त विपयतृष्णा के त्याग रूप दम तथा तीव्र क्रोधकण्डूति के त्यागरूप शमगुरण का लाभ होता है । कपायता मे सम्यक्त्वगुण का लाभ होता है एव उससे जीवादि पदार्थों का सदेह - विपर्यास रहित सवेदनात्मक विशिष्ट अनुभवज्ञान होता है । इस प्रकार का ज्ञान होने से अहितकारी आचरण का त्याग एव ज्ञान-ध्यानादि हितकारी श्राचरण मे उद्यम होता है तथा सर्वोत्तम क्षमादि दशविध यति-धर्मो मे आसक्ति होती है जिससे सर्वोत्तम मृदुतादि गुणों का पालन होता है । स्वाध्याय- ध्यान सहित सर्वोत्कृष्ट सयम धर्म का पालन परम्परा से मुक्ति मुख प्रदान करवाता है । इन सबका मूल इष्ट देवता को नमस्कार है तथा इष्ट देवता के नमस्कारपूर्वक होता

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