Book Title: Mahamantra ki Anupreksha
Author(s): Bhadrankarvijay
Publisher: Mangal Prakashan Mandir

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Page 196
________________ 'ताण' पद द्वारा काययोग की तथा चारित्रगुण की शुद्धि होती है अत मोहदोप जीता जाता है। तीनो योगों तथा उनके द्वारा अभिव्यक्त होते ज्ञानादि तीनो गुणो द्वारा वात-पित्त-कफ के दोष तथा राग-द्वीप-मोह के दोष भी नष्ट होते है। अर्थात् शरीर तथा आत्मा दोनो ही की एक साथ शुद्धि करवाने का गुण नवकार के प्रथम पद के जाप मे स्थित है, वैसे ही उपलक्षण से धर्म के प्रत्येक अग के सम्यक् आराधन मे वह शक्ति निहित है। 'नमो' पद की गम्भीरता 'नमो' मंत्र मे नवधा भक्ति निहित है। 'नमो' मत्र द्वारा नाम का श्रवण, कीर्तन तथा स्मरण होता है साथ ही प्राकृति का पूजन, वन्दन तथा अर्चन होता है। द्रव्य निक्षेप से परमात्मा की सेवा तथा भक्ति होती है तथा भावनिक्षेप से परमात्मा के प्रति आत्मनिवेदन अथवा सर्वसमर्पण होता है। नवकार मर्वमंगलो मे प्रथममगल है। पाय, अशुभ, कर्म तथा सभी मलो को गलाने वाला मगल होता है, उसमे भी उत्कृष्ट पचमगलस्वरूप नवकार है। नवकार द्वारा वाह्य-अभ्यन्तर अथवा द्रव्य-भावमल नष्ट होते है । अज्ञान तथा प्रश्रद्धा ही भावमल है। नवकार द्वारा आत्मा का अज्ञान टलता है तथा परमतत्त्व का ज्ञान होता है। नवकार द्वारा धर्मफल की अश्रद्धा टलती है तथा श्रद्धा जागृत होती है। नवकार, मिथ्यात्व के तथा अज्ञान के परिरणामो को गलाता है विनष्ट करता है, हनन करता है, शुद्ध करता है तथा विध्वंस करता है; सम्यक्त्व के तथा ज्ञान के परिणामो को लाता है, उत्पन्न करता है, सर्जित करता है, पुष्ट करता है तथा वद्धित करता है अप्रतीत की प्रतीति करवाता है; अनिर्णित का निर्णय करवाता है, आत्मतत्त्व

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