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मंत्र का पाठ करने से चित्त में भक्ति स्फुरित होती है ।
वाह्यपदार्थ वाह्यक्रिया की अपेक्षा रखते है परन्तु सूक्ष्मतम तथा जीव मात्र मे सत्ता रूप में विराजमान परमात्मा की प्राप्ति विवेक विचार, जान तथा भक्ति रूपी अन्तरंग साधनों से होती है।
स्नेह रूपी तेल से भरित मानदीप मनमन्दिर में प्रकट करने से देहमन्दिर में विराजमान अन्तर्यामी परमात्मा के दर्शन होते है अत. दीर्घ काल पर्यन्त ग्रादर सहित सतत अभ्यास की जरूरत है। - १ वह अभ्यास मन्त्र के जाप द्वारा तथा उसके अर भावना द्वारा किया जा सकता है। इस प्रकार या
का अर्थभावना सहित जव पाराधित होता है तब वह अवश्य ' भक्तिवर्द्धक बनता है तथा वढी हई भक्ति मुक्ति का समीपर्तिनी कर देती है।
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॥ शिवमस्तु सर्वजगतः ॥