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'नमो' यह समझाता है कि अनात्मा से प्रात्मा का मूल्य अधिक है। 'नमो' पद द्वारा अनात्मभाव की विस्मृति तथा प्रात्मभाव की स्मृति जागृत होती है। __ मोक्षमार्ग मे भावना तथा ध्यान को रागादि दोषो के क्षय हेतु अति उपयोगी माना गया है । 'नमो अरिहतारा' मन मे 'नमो' पद भावना का उत्पादक है तथा 'अरिहताण' पद ध्यान का साधन है।
विषयो का रस घटाने का कार्य 'नमो' पद की भावना से होता है तथा प्रात्मरस जगाने का काम श्री अरिहंतपद के ध्यान से होता है। विपयो का स्मरण अनादि अभ्यास के कारण अपने आप होता है। देव गुरु का स्मरण अभ्यास के बल से साध्य है। देव-गुरु के स्मरण का अभ्यास दृढ होने के पश्चात् विषयो का स्मरण अपने आप टल जाता है।
बहिरात्मभाव में प्रात्मा का चला जाना एक प्रकार का आध्यात्मिक प्रात्मघात है। उससे जीवन को बचाने वाला श्री नमस्कार मत्र का जाप है ।
भाव नमस्कार
'नमो अरिहतारण' अर्थात् 'अरिहतो को नमस्कार' इस पद का तात्पर्य यह है कि मैं अरिहंतो का दास हूँ, प्रेष्य हूँ, किंकर हूँ तथा सेवक हूँ। अरिहत मेरे स्वामी हैं, नाथ हैं, मालिक हैं तथा सत्ताधीश हैं। अरिहतो के निर्देश को, अरिहतो की आज्ञा को, अरिहंतो के कार्य को तथा अरिहतो की सेवा को मैं स्वीकार करता हूँ। मैं यह मानता हूँ कि उनकी प्राज्ञा का पालन ही मेरा परमधर्म है।
नमस्कार्य की प्राजानुसार जीवन जीना ही नमस्कारकर्ता का शुभभाव है । आज्ञापालन को परमकर्तव्य समझने वाला ही सच्चा नमस्कार करने वाला गिना जाता है । प्राज्ञा