Book Title: Mahamantra ki Anupreksha
Author(s): Bhadrankarvijay
Publisher: Mangal Prakashan Mandir

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Page 192
________________ ५२ की चचलता नष्ट होती है। चंचलता रजोगुण तथा तमोगुण से होती है। उसके नष्ट होने पर मन तथा प्रारण का निग्रह सरल वनता है। 'अरिह' प्रात्मा का सकेत है तथा 'नमो' प्राणो का सकेत है। 'ताण' पद दोनो की एकता को बताने वाला चिह्न है। 'नमो' द्वारा प्रारण अरिह रूपी प्रात्मा से सयुक्त होता है तथा उससे त्राणशक्ति उत्पन्न होती हैं। इन्द्रियो को विपयो से शान्त कर प्रात्मा के प्रति होमने का कार्य 'नमो' मन्त्र द्वारा साधा जाता है। इसीलिए उसे सभी प्रकार के यज्ञो मे श्रेष्ठयज्ञरूप मे स्थान मिलता है। नमस्कार द्वारा बोधि एवं निरूपसर्ग __नमो' का अर्थ है-वदन, पूजन, सत्कार तथा सम्मान । उनके परिणामस्वरूप बोधि तथा निरुपसर्ग अवस्था प्राप्त होती है । 'नमो' पद निरुपसर्ग पर्यन्त के लाभ का हेतु है, यह निर्णय, श्रद्धा, मेधा, धृति, धारणा तथा अनुप्रेक्षा से होता है । ये श्रद्धादि साधन उत्कट इच्छा, प्रवृत्ति, स्थैर्य तथा सिद्धि के कारण वनकर नमस्कार द्वारा निरुपसर्गपद को प्रदान करवाते है। निरुपसर्गपद अर्थात् जहाँ जन्ममरण आदि उपसर्ग नही हो ऐसा मोक्षस्थान । वन्दन अर्थात् अभिवादन तथा मन, वचन तथा काया की प्रशस्तप्रवृत्ति । पूजन अर्थात् पुष्पादि द्वारा सेम्यक् अभ्यर्चन । सत्कार अर्थात् श्रेष्ठ वस्त्रालकारादि द्वारा पूजन । सन्मान अर्थात् स्तुति, स्तोत्रादि द्वारा गुणगान । उसके परिणामस्वरूप वोधि अर्थात् जिन-धर्म की प्राप्ति । वन्दन, पूजन, सत्कार, सन्मान आदि जव श्रद्धा द्वारा होते हैं बलात्कारादि द्वारा नही, मेधा द्वारा होते हैं पर जडचित्त से

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