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प्रकाशकज्ञान एवं स्थैयोत्पादकक्रिया
धर्म मगल है जो दो प्रकार का हे एक क्रियारूप तथा दूसरा ज्ञानरूप । ज्ञानरूपमगल के बिना श्रकेला क्रियारूप मंगल अथवा क्रियारूपमंगल के बिना अकेला ज्ञानरूपमगल मोक्षमार्ग नही बन सकता है ।
देव, गुरु एवं धर्म रूपी तत्त्वत्रयी उपास्य है । ज्ञान, दर्शन एव चरित्र रूपी तत्त्व - त्रयी सेव्य है । उपास्य तत्त्व की उपासना नवकार रूपी श्रुतमगल से होती है इसलिए वह ज्ञान स्वरूप है । सेव्य तत्त्व की श्राराधना श्री सामायिकसूत्र की प्रतिज्ञा से होती है इसलिए वह क्रिया स्वरूप है । एक का मंगलपाठ होता है दूसरे की मगलप्रतिज्ञा होती है । मगल पाठ में ज्ञान मुख्य है एव क्रिया गौरण है । क्रिया मुख्य है एत्र ज्ञान गोरा है । जहाँ ज्ञान गौण रूप से क्रिया भी निहित है । जहाँ क्रिया गौरण रूप से ज्ञान भी निहित है ।
मंगल प्रतिज्ञा मे रहता है वहाँ मुख्य है, वहाँ
नवकार द्वारा पाप नही करने की प्रतिज्ञा का बहुमान होता है । सामायिक द्वारा बहुमान पूर्वक पाप नही करने की प्रतिज्ञा का स्वीकार होता है । ज्ञानमात्र का मूलस्रोत नवकार है । क्रियामात्र का मूलस्रोत 'करेसिभते' है ।
"क्रिया के कारण तीन योग एव तीन करण हैं । उसका नियमन " करेमिभते" की प्रतिज्ञा से होता है । सामायिक मे सावद्यत्याग एव निरवद्यसेवन की प्रतिज्ञाए तीन करण से एव तीन योग से व्याप्त हैं । सावद्यक्रिया ग्रस्थैर्यनिष्पादक है । उसके त्याग की क्रिया आत्मा मे रथैर्य उत्पन्न करती है ।
ज्ञान प्रकाशक है । क्रिया स्थैर्यजनक है। दोनो मिलकर श्रात्मसुख के कारण वनते है । नवकार द्वारा नवतत्त्व,