Book Title: Mahamantra ki Anupreksha
Author(s): Bhadrankarvijay
Publisher: Mangal Prakashan Mandir

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Page 167
________________ संभालने योग्य है। इससे मन का रक्षण होता है, संकल्प विकल्प छट जाते हैं, समत्वभाव मे स्थिति उत्पन्न होती है एवं आत्मारामता या आत्मस्वरूप में ही रमण करने का अभ्यास होता है। ऋण मुक्ति का महामन्त्र नमस्कार ऋणमुक्ति का मन्त्र है। अपने पर ऋण है-ऐसा मानने वाला व्यक्ति अपने आप नम्र बनता है एवं __ निरहंकार रहता है। प्रत्येक जन्म मे दूसरो पर कृत अपकार एव दूसरो के स्वय पर हुए उपकारो को याद रखने वाला ही सदा नम्र रहता है एव उपकार के वदले मे प्रत्युपकार करने की भावनावाला रहता है। स्वयंकृत अपकार का बदला समता भाव से सभी प्रकार के कष्ट सहन मे निहित है एवं अपने ऊपर हुए उपकार का वदला आत्मज्ञान से चुकता है । आत्मज्ञानी पुरुप विश्व पर जो उपकार करता है, वह इतना बड़ा होता है कि उसके सामने उस पर दूसरो द्वारा किए गए सभी उपकारो का बदला चुक जाता है । दुख एव कष्ट के समय कर्म के विपाक का चिन्तन करने से समता भाव अग्वण्ड रहता है एवं उससे दूसरो पर किए गए अपकारो का ऋण उतर जाता है । 'नमो' मन्त्र अपकार एवं उपकार दोनो का बदला एक साथ चुका सकता है। उसका कारण उसके पीछे कर्मविपाक का भी विचार है एव आत्मज्ञान प्राप्त करने का भी विचार है। कर्मविपाक का विचार समता द्वारा सभी पापो का नाश करता है। आत्मज्ञान का विचार सभी मंगलों का कारण बनता है।

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