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'नमो' पद रूपी सेतु
__ 'नमो' शब्द अर्द्ध मात्रा स्वरूप है। त्रिमात्र मे से अमात्र मे ले जाने के लिए अर्द्ध मात्रा सेतु रूप है। कर्मकृत-वैपम्य त्रिमात्र रूप है। धर्मकृत 'नमो' भाव ही अर्द्ध मात्रा रूप है एवं इससे होने वाला पाप का नाश एव मगल का आगमन ही अमात्र रूप है। अमात्र का अर्थ है अपरिमित प्रात्म-स्वरूप । राग, द्वेष एव मोह ही त्रिमात्र रूप है एव 'नमो' ही अद्वै मात्र रूप है अथवा प्रौदयिक भाव के धर्म त्रिमात्र रूप है। क्षयोपशम भाव के धर्म ही अर्दू मात्र रूप हैं एव क्षायिक भाव के धर्म ही अमात्र रूप है। ___नमो' मत्र द्वारा प्रौदयिक भावो के धर्मों का त्याग होकर क्षायिक भाव के धर्म प्राप्त होते है एव वे प्राप्त होने मे क्षयोपशम भाव के धर्म सेतु रूप वनते है।। ___ नमो' मत्र ममत्व भाव का त्याग करवा कर समत्व भाव की ओर ले जाता है अत वह सेतु रूप है। 'नमो' मत्र निर्विकल्प पद की प्राप्ति हेतु अशुभ विकल्पो से मुक्त कर शुभ सकल्पो से सयुक्त करने वाला है। इसलिए भी उसकी सेतु की उपमा अन्वर्थक है-मार्थक है।
निर्विकल्प चिन्मात्र समाधि
मत्र का अर्थ है गुह्य भाषण । जीवात्मा का परमात्मा के साथ जिन पदो द्वारा गुह्य भापण हो उन पदो को मत्र पद कहते है । गुह्य भापण का अर्थ है विना किसी अन्य की साक्षी के मात्र आत्म-साक्षी से आत्मा का परमात्म-भाव रूप मे स्वीकार।