________________
'नमो' पद केवल नमस्कार रूप नहीं वरन् द्रव्य-भाव सकोच रूप है । द्रव्य, भाव, देह, प्राण, मन एव बुद्धि से, बाहर से एव अन्दर से सकुचित होना, साथ ही इन देह, प्राण, मन, बुद्धि आदि सब मे चैतन्य का सम्पादन करने वाले यात्मतत्त्व मे विलीन होना, निमज्जित होना तथा तन्मय, तत्पर एव तद्रप होना ही 'नमो' पद का रहस्यार्थ है। ___ 'नमो' पद के माथ श्री अरिहत, सिद्ध, साधु आदि पदो को सयुक्त करने से उसका अर्थ एव प्राशय भी प्रात्मा की शुद्ध अवस्थामो को आगे बढाने का है तथा उन अवस्थाप्रो द्वारा अवस्थावान शुद्ध प्रात्मा मे परिणति लाकर वहाँ स्थिर करने का है।
जाप का ध्येय है आत्म रूप मे अर्थाकार हो जाना । कहा है कि
"तन्जपस्तदर्थभावनम्' - अर्थात्--मत्र का जाप मत्र के अर्थ के साथ भावित होने के लिए है।
अनात्मभाव की तरफ ढलते जीव को प्रात्म-भाव की तरफ ले जाने का कार्य नमो मत्र द्वारा साधा जाता है। मन अनात्म-भाव की ओर ढलता है । अत वह ससार मे जीवात्मा को ले जाने के लिए सेतु बनता है। 'नमो' इसके विरुद्ध आत्म भाव मे ले जाने हेतु सेतु बनता हे।
'नमो' पद अन्तरात्मभाव का प्रतीक है । अनात्मभाव से आत्मभाव की पूर्णता मे ले जाने के लिए 'नमो' मत्र सेतु का काम करता है। ___मन ही ससार है । प्रात्मा ही मोक्ष है। मन का झुकाव ससार की तरफ से मुडकर आत्मा की तरफ होना ही मोक्ष मार्ग है एव वही 'नमो' पद का अभिप्रेत है ।