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अनुप्रेक्षा
( तृतीय किरण) महामन्त्र की आराधना महामन्त्र की आराधना मे आराध्य, आराधक, आराधना एव आराधना का फल इन चार वस्तुओ का ज्ञानआवश्यक है। १. आराध्य नवकार २. पाराधक--समिति-गुप्तियुक्त जीव ३ अाराधना-मन, वचन एव काया की शुद्धि तथा एकाग्रता
पूर्वक होता जाप श्राराधना का फल-इहलौकिक-अर्थ, काम, प्रारोग्य, अभिरति पारलौकिक-स्वर्गापवर्ग के सुख ।
परमेष्ठि कृपा के बिना पवित्र गुणो की सिद्धि नही होती है । नवकार के जाप से परमपद स्थित पुरुषो का अनुग्रह प्राप्त होता है जिससे जीवन मे सयम आदि गुणो की सिद्धि होती है। 'नमो' पद शरण-गमन रूप है। दुष्कृतगर्दा एव सुकृतानुमोदना ये दोनो ही शरण-गमन रूप एक ही ढाल की दो बाजुएं हैं । दुष्कृतगीं से पाप का मूल जलता है एव सुकृतानुमोदन से धर्म का मूल सिंचित होता है । - 'नमो' पद स्वापकर्प का बोधक है। अत. इससे दुष्कृतगर्दी होती है । 'नमो' पद नमस्कार्य के उत्कर्ष का बोधक है। अत इससे सुकृतानुमोदन होता है। स्वापकर्ष की स्वीकृति से पाप का प्रायश्चित होता है एव परोत्कर्ष के वोध से विनय गुण पुष्ट होता है जो धर्म का मूल है । इस प्रकार एक नमस्कार मे जीव की शुद्धि के लिए तीनो प्रकार की सामग्री निहित है।