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दुष्कृतगर्दा एवं सुकृतानुमोदन एक ही सिक्के
के दो पक्ष
जीव की कर्म के सम्बन्ध मे पाने वाली शक्ति सहजमल एवं कर्म सम्बन्ध से मुक्त होने वाली शक्ति तथा-भव्यत्व कहलाती है। योग्य को नमन नही करने से तथा अयोग्य को नमन करने से सहजमल बढ़ता है। इसके ठीक विपरीत योग्य को नमन करने से तथा अयोग्य को नमन नही करने से तथाभव्यत्व विकसित होता है। योग्य को नमन करने तथा अयोग्य को नमन नही करने का ही अर्थ सच्चा नमस्कार है । सच्चे नमस्कार का अर्थ है योग्य की शरण में जाना तथा अयोग्य की शरण मे नही जाना। अयोग्य को नमन नही करने का अर्थ अयोग्य की शरण का अस्वीकार है। योग्य को नमन करने का अर्थ योग्य की शरण का स्वीकरण है । अयोग्य की शरण मे नही जान का नाम ही दुष्कृतगर्दा है तथा योग्य की शरण मे जाना ही सुकृतानुमोदन है । ये दोनो शरणगमन रूप सिक्के की दो बाजुएँ है । श्री अरिहतादि के प्रति नमस्कार श्री जिन शासनरूपी साम्राज्य का नगद नारायण है । इस नगद नारायण (मुद्रा ) के एक तरफ दुष्कृतगहीं की तथा दूसरी तरफ सुकृतानुमोदन की छाप है । नमस्कार, दुष्कृतगर्दा तथा सुकृतानुमोदन ये तीनो समन्वित होकर भव्यत्व परिपाक के उपाय बनते है। संसार की विमुखता-मोक्ष की सम्मुखता
सहजमल जीव को संसार की तरफ तो तथा-भव्यत्व मुक्ति की ओर खीचता है । सहजमल के ह्रास से पाप के मूलो का नाश होता है तथा उसकी सिद्धि दुष्कृतगी से होती है । तया