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हो गए हैं । इसीलिए त्रिकरण योग से श्री अरिहंत की भक्ति करने का विधान है । जव तीनो योग एव तीनो करण श्री अरिहत के ध्यान मे पिरो जाय तव अन्त. करण निर्मल हो जाता है एव निर्मल अन्तकरण मे अरिहंत तुल्य आत्मा का शुद्धस्वरूप प्रतिविम्बित होता है । परमात्मा
समापत्ति
विषय की समापत्ति अर्थात् तीन करण से तीन योग से होने वाला विषय का ध्यान आत्मा को तद्रूप बनाता है, तो आत्मा ( सब्जेक्ट) को समापत्ति अर्थात् तीनकरण - तीन योग से होने वाला शुद्धात्मा का ध्यान श्रात्मा को परमात्मा स्वरूप बनाता है । विहित अनुष्ठान को भी शास्त्रोक्त विधानानुसार करने से परमात्मा के साथ समापत्ति का कारण वनता है क्योकि शास्त्रोक्त अनुष्ठान करते समय शास्त्र-कथक शास्त्रकारो पर भी बहुमान गर्भित अन्तरंग प्रीति होती है । वह प्रीति परमात्मा - समापत्ति का कारण बनती है । विहित अनुष्ठान द्वारा होने वाला परमात्म स्मरण परमात्म-समापत्ति का कारण होता है क्योकि वह स्मरण वहुमान गर्भित होता है । भगवान की आज्ञा का आराधन एक प्रकार से बहुमान गर्भित परमात्म-स्मरण ही है । उससे भगवान का नाम ग्रहरण एव प्रतिमा पूजन भी भगवान की आज्ञा के आराधनरूप में करणीय है । आज्ञा के श्राराधन मे श्राज्ञाकारक का वहुमान गर्भित स्मरण रहता है । अत वह समापत्ति का सरल साधन बनता है | भगवान के स्मरण को एव क्लिष्ट कर्म को सहअनवस्थान विरोध है । जहाँ बहुमान गर्भित भगवत्स्मरण होता है वहाँ ससार भ्रमरण के कारण भूत क्लिष्ट कर्म टिक नही सकते । भगवत्स्मरण मिथ्या मोह का नाश कर आत्मा के शुद्ध स्वरूप के साथ एकता का पैदा करवाता है ।