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दुःख को अपना दुःख मानने वाले तथा दूसरे के सुख की अपने सुख जितनी ही कीमत ग्रांकने वाले में काम, क्रोध तथा लोभ ये तीनो दोष लुप्त हो जाते हैं। इसी प्रकार माया, मिथ्यात्व तथा निदान ये तीनो शल्य भी चले जाते है | श्री नमस्कार मन्त्र से होती लेश्याविशुद्धि का यह फल है । 'लेश्याविशुद्धि' तथा 'स्नेह का परिणाम' एक दृष्टि से समान अर्थ के वाचक शब्द हैं । श्री नमस्कार मन्त्र समस्त जीव- राशि पर स्नेह का परिणाम विकसाता है, साथ ही इस स्नेह के परिणाम में काम क्रोध एवं लोभ ये तीनो दोष तथा माया, मिथ्यात्व एवं निदान ये तीनो शल्य पानी से भरे कच्ची मिट्टी के घड़े की तरह गल जाते हैं तथा आत्मा क्षान्त दान्त एव शान्त तथा निष्काम, निर्दम्भ तथा नि शल्य हो क्रिया के उत्कृष्ट फल को प्राप्त कर -सकती है ।
कृतज्ञता गुण का विकास
नवकार चौदह पूर्व का सार है एवं समस्त श्रुत ज्ञान का रहस्य है । उसका एक कारण नमस्कार से कृतज्ञता गुरण का समायोजन होता है । कृतज्ञता गुरण सभी सद्गुणो का मूल है । उसका शिक्षण नमस्कार से मिलता है । कृतज्ञता गुरण का उत्पादक परोपकार गुण है । परोपकार गुरण सूर्य के स्थान पर है तो कृतज्ञता गुरण चन्द्रमा के स्थान पर । जिससे उपकार होता है, उसके प्रति कृतज्ञ रहना ही धर्म का आधार है । ऐसा ज्ञान प्रारम्भ से ही देने हेतु श्री नमस्कार मंत्र को मूल मत्र या महा मंत्र कहा है | नवकार विना तप, चारित्र एवं श्रुत निष्फल कहे गए हैं। इसका अर्थ कृतज्ञता भाव के बिना समस्त श्राराधना अंकरहित शून्य जैसी है । सम्यक्त्व गुरण भी कृतज्ञताभाव का सूचक है क्योकि उसमे देव तत्त्व, गुरुतत्त्व एवं धर्म तत्त्व के प्रति भक्ति है, नमस्कार है, श्रद्धागभित बहुमान