________________
४०
तात्त्विक नमस्कार
'तत्त्वमसि' तात्त्विक नमस्कार है । उसका प्रयोग उसी समय
होता है कि जब ध्याता ध्यानावेश को पूर्ण कर ध्येयावेश में प्रवेश करन े वाला होता है । द्रष्टा को जब स्वरूप मे अवस्थान करना होता है तब ध्याता गौण वनता है तथा ध्येय मुख्य बनता है अर्थात् ध्येयावेश मे प्रवेश के समय तत्त्वमसि का अथवा सोऽहं का मन्त्र - प्रयोग होता है ।
1
नमो अरिहताण, मन्त्र से श्री ग्ररिहत परमात्मा की चारों निक्षेपो से नवो प्रकार की भक्ति होन े के बाद उसके फलस्वरूप श्री श्ररिहत परमात्मा के मुखकमल से तत्त्वमसि वाक्य का श्रवण करते हुए अपनी आत्मा श्री अरिहत स्वरूप है ऐसा स्वरूपानुसंधान कर ग्रहमय अपनी आत्मा का ध्यान करना चाहिये । यह ध्यान समस्त पदार्थों की सिद्धि करवाने वाला है ।
पाप नाशक एवं मंगलोत्पादक मन्त्र
नमो अरिहतारण | श्री अरिहतो को किया हुआ नमस्कार सभी पापो का नाशक है तथा सभी मगलो का उत्पादक है । उसका मुख्य कारण श्री अरिहतो का केवल ज्ञानमय स्वरूप है । ज्ञानस्वरूप रागादि पापो का नाशक है तथा मैत्र्यादि भावो का उत्पादक है । ज्ञानस्वरूप मे समरता होने के कारण वह हर्ष, शोक तथा शत्रुभित्र भाव से परे है । हर्प शोक का मूल सुखदुख का द्वन्द्व है तथा रागद्वेष का मूल शत्रु मित्रभाव की वृत्ति है । ज्ञानचेतना सत्ता से सभी मे समानभाव से वर्तित होने से, उसी मे रमरण करने वाले श्री अरिहतादि को किया हुआ नमस्कार कषाय भाव तथा विषय भाव को
1