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तथा उससे होने वाला जीव का रक्षरण । विशिष्ट मनन सम्पर्कज्ञान का साधन बनता है तथा वह सम्पर्क-ज्ञान शुभ भाव जगाकर आत्मा का रक्षण करता है, योग्य मार्ग पर आरूढ करता है । सम्यक् ज्ञान-दर्शन-चरित्र मे रहना ही योग्य मार्ग है एव मिथ्या ज्ञान-दर्शन-चारित्र मे रहना अयोग्य मार्ग है । मत्र मिथ्या रत्नत्रयी मे से जीव को छुडाकर सम्यक् रत्नत्रयी की ओर ले जाता है अत. मनन के द्वारा रक्षण करवाने वाला है यह सिद्ध होता है।
___ अक्षय फल देने वाला दान नमो मत्र द्वारा श्री पचपरमेष्ठि भगवान् को समर्पित सम्मान के दान के बदले मे बडा से बड़ा दान मिलता है तथा वह दान है स्वयं की शाश्वत प्रात्मा का ज्ञान होना । स्वय की शाश्वत आत्मा का अनादिकाल से हुआ विस्मरण ही अनन्त दुःख का मूल है तथा उसका स्मरण ही अनन्त सुख का मूल है। श्री पचपरमेष्ठि का स्मरण नमस्कार द्वारा स्वय की शाश्वत आत्मा का ज्ञान करवाकर अनन्तकाल तक नहीं घटे वैसा अक्षय ज्ञान दान करवाता है । जो सदैव देने वाले ही है पर कभी लेने वाले नही उनको समर्पित किया जाने वाला दान ही एक ऐसा दान है कि जिसका फल अक्षय होता है। श्री पंचपरमेष्ठि भगवान सम्मान लेने की इच्छा से सर्वथा रहित हैं तथा जीवो को सर्वस्वदान करने हेतु ही जिनका संसार मे अस्तित्त्व है उनको नमस्कार द्वारा जब हृदय से सम्मान का दान किया जाता है तव उसका फल अपरिमित होता है। पूज्य श्री आनन्दघनजी महाराज ने कहा है
अहो अहो हुं मुजने नमुं, नमो मुज नमो मुजरे, अमित फल दान दातारनी, जेहने भेट थई तुज रे ।
शान्ति जिन एक मुज विनति ॥