________________
भी है। नमो में भक्ति के सर्व प्रकार अन्तर्भत हो जाते हैं। द्रव्यपूजा तथा भावपूजा के सभी प्रकार नमो मन्त्र में समा जाते हैं।
सभी अवस्थाओं में कर्तव्य
श्री अरिहत को नमस्कार, श्री सिद्ध को नमस्कार, श्री आचार्य को नमस्कार, श्री उपाध्याय को नमस्कार तथा सर्वसाधुओ को नमस्कार आदि आत्मा की भिन्न-भिन्न अवस्थाओ को ही नमस्कार है। श्री प्राचार्य, श्री उपाध्याय तथा श्री साधु को नमस्कार छठे गुणास्थानक से बारहवें-तेरहवे गुणस्थानक तक की अवस्था को नमन है। श्री अरिहत को नमस्कार प्रमुखत (मुख्यत) तेरहवें गुणस्थानक को नमन है एव सिद्ध को नमस्कार मुख्यतः चौदहवे गुणस्थान को नमस्कार है । तत्त्व से उन-उन अवस्थानो में प्रात्मा का भाव से परिगमन होता है। स्वय प्रात्मा का उन-उन विशुद्ध अवस्थानो में परिणमन वाह्य भावो के साथ की अहम्मन्यता तथा ममता के भाव का नाश करता है तथा प्रान्तरिक भावो के साथ की अहम्मन्यता तथा ममता के भावो को पैदा करता है । वस्तुतः यह नमस्कार अहम्मन्यता व ममता का नाशक तथा निर्ममता, निरहम्मन्यता तथा समता का उत्पादक है। ममता समाधिस्वरूप है तथा वाह्य विषयो की ममता सकलेश स्वरूप है । सकलेश को टाल समाधि को साधने वाला नमस्कार सर्वावस्थानो मे करणीय है। प्रथम गुणस्थान में किया हुआ नमस्कार मिथ्यात्व का नाश करता है, चौथे गुणस्थानक मे कृत नमस्कार अविरति का नाश करता है तथा छठे गुणस्थानक मे किया हुआ नमस्कार प्रमाद का नाशक होता है। ऊपर के गुणस्थानको मे सम्भूत नमस्कार स्वभाव परिरगमन रूप बन