________________
३४
वाला है | नवकार शुद्धात्म परिणमन रूप है। श्री नवकार मन्त्र को जानने से श्रात्मा रागादि भाव एव परसंग से मुक्त होती है जो सच्ची मुक्ति है ।
शुद्धोपयोग मे स्थित श्री श्ररिहत, श्री सिद्ध श्रादि परमेष्ठि आत्मा से ही उत्पन्न विपयातीत, निरुपम एव श्रनन्त विच्छेदरहित सुख का अनुभव करते है । उस स्वरूप का ध्यान धर्मध्यान के कम से शुक्ल ध्यान का कारण वन कर्मरूपी ईंधन के समूह को शीघ्र भस्मीभूत करता है । हृदय में श्रात्मस्वभाव की लब्धि प्रकाशमान होने के साथ ही शुभाशुभ के कारण भूत संकल्पविकल्प शान्त हो जाते है । जो केवल ज्ञान स्वभावी है, केवल दर्शन-स्वभावी है, केवल सुखमय हे एव केवल वीर्य-स्वभावी है, वही आत्मा है ऐसा ज्ञानी पुरुष सोचते है । जिस ध्यान मे ज्ञान से श्रात्मा प्रतिभासित नही होती है, वह ध्यान नही है । जो ज्ञानी नित्य उपयुक्त होकर शुद्धात्म स्वभाव का परिशीलन करता है वह अल्पकाल मे ही सभी दुखो से मुक्त हो जाता है । श्री नमस्कार मन्त्र श्रात्मध्यान का अनन्य साधन है । जिससे दर्शन मोह का विनाश होता है । श्रात्म भावना ने प्रतिक्रमण, प्रतिसरण, प्रतिहरण, वारण, निर्वृति, निन्दन, गर्हण और शुद्धि एक साथ होती है । नमस्कार से आत्मभावना होती है । अत* नमस्कार प्रतिक्रमण, प्रतिसरण आदि रूप है। उससे मिध्यात्व, अज्ञान तथा पापादि श्रास्रवो का त्याग होता है, साथ ही श्रात्मस्वरूप का असगभाव से ध्यान होता है । शुभोपयोगयुक्त श्रात्मा निर्वाण को प्राप्त करती है । धर्म ध्यान एव शुक्ल ध्यान दोनो का कारण होने से नमस्कार स्वर्गापवर्ग को देने वाला है ऐसा सिद्ध होता है । मुक्ति का अर्थ है ससार के रोग शोक से मुक्त होना, ज्ञान दर्शनादि अनुपम वस्तुएँ प्राप्त करना तथा परमसुख तथा परमश्रानन्द का अखण्ड अनुभव करना । सत्मग रहित ध्यान