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. पच मंगल से भाव धर्म का आराधन होता है क्योकि उस रत्नत्रयधरो के विषय में भक्ति प्रकट होती है, उनकी प्राज्ञा पालन करने का उत्साह जागता है, एक सबके शुभ की ही चिन्ता का भाव प्रकट होता है एव अशुभ संसार के प्रति निर्वेद की भावना जन्म लेती है । कहा है कि.. रत्नत्रयधरे एका, भक्तिस्तत्कार्यकर्म च ।
शुभैकचिन्ता संसारे जुगुप्सा चेति भावना ।। यह भाव धर्म, दान, शील, तप आदि द्रव्य धर्म को वृद्धि करता है एव यह द्रव्य धर्म की वृद्धि फिर भाव धर्म की वृद्धि करती है । इस प्रकार उत्तरोत्तर द्रव्य-भाव धर्म की वृद्धि अपनी पराकाष्ठा को प्राप्त कर सर्व कर्म रहित मोक्ष का कारण वनती है।
नवकार मन्त्र के पदो मे गुण एव गुरगी की उपासना के उपरान्त शब्द द्वारा शुभ स्पन्दन उत्पन्न करने की जबरदस्त शक्ति है । अत उसे सर्व मङ्गलो मे प्रथम मगल एव सर्व कल्याणो मे उत्कृष्ट कल्याण कहा गया है। __ चार निक्षेपो से होती पाँचो परमेष्ठियो की भक्ति नवकार मन्त्र में निहित होने से सर्व प्रकार के शुभ, शिव एव भद्र तथा पवित्र, निर्मल एव प्रशस्त भाव पैदा करने का सामर्थ्य उसमे निहित है। . अनिर्णीत वस्तु का नामादि द्वारा निर्णय, शब्द द्वारा अर्थ का एवं अर्थ द्वारा शब्द का निश्चित बोध, अनभिमत अर्थ का त्याग तथा अभिमत अर्थ का स्वीकार करवाने मे जो उपयोगी होता है वह निक्षेप कहलाता है।
नवकार मन्त्र के पद नाम, स्थापना, द्रव्य एव भाव इन चार निक्षेपो के साथ सम्बन्धित होने से समग्र विश्व की शुभ वस्तुओं के साथ सम्बन्ध स्थापित करवाते है। इनके द्वारा