________________
१६
प्राणशक्ति एवं मनस्तत्त्व
नमस्कार रूपी क्रिया द्वारा श्वास का मनस्तत्त्व मे रूपान्तर हो जाता है । ज्योज्यो नमस्कार के जाप की सख्या वढती जाती है त्यां त्यां श्राव्यात्मिक उन्नति होने के साथ साधक श्वास प्रश्वास को मन की ही क्रिया के रूप में जान सकता है । उससे मन के सकल्प विकल्प शमित हो जाते है ।
प्रारण शक्ति द्वारा मन को सहज ही सयम मे लेती क्रिया प्रणाली अनन्त को पहुँचने का सरल से सरल, प्रत्यन्त ही प्रभावी एव सम्पूर्ण प्रकार से वैज्ञानिक मार्ग है । नमस्कार की क्रिया एवं जाप द्वारा इस मार्ग की सरल रूप से सिद्धि होती जाती है । ग्रत जाप द्वारा होती नमस्कार की क्रिया का मार्ग ग्रनन्त परमात्मस्वरूप को प्राप्त करने का द्रुत, सुनिश्चित एव अनेक महापुरुषो द्वारा अनुभव से प्रकाशित राजमार्ग है । तुलसीदासजी का भी कथन है कि
नामु सप्रेम जपत अनयासा, भगत होहिं मुद मंगल वासा | राम एक तापस तिय तारो, नाम कोटि खल कुमति सुधारी । सहित दोष दुख दास दुरासा, दलइ नाम जिमि रवि निसि नासा । भाय कुभाय अनख आलसš, नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ ।
मन्त्र के शब्दो मे होता प्रारण का विनियोग ( प्रवृत्ति निवृति दो व्यापार) कोई एक अर्थ मे ही समाप्त नही होता शास्त्र निर्दिष्ट सभी ग्रथों मे व्याप्त हो जाता है । मन्त्र जाप द्वारा शरीर, प्रारण ( यहाँ प्रारण श्वासोच्छवास शब्द के लिए सकेतित है ।) इन्द्रियाँ, मन, बुद्धि एव प्रज्ञा पर्यन्त सभी करण शुद्धि को अनुभव करते हैं एव जीवात्मा को श्राध्यात्मिक श्रानन्द की अनुभूति पर्यन्त ले जाते है । मन्त्र के शब्दो के द्वारा मन-बुद्धि यादि का प्रारण तत्त्व मे रूपान्तर होता है एवं प्राण तत्त्व सीधी