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होता है और आज्ञा का आराधक ही शिवसुख को प्राप्त करता है।
उत्कृष्ट अनुमोदना एवं उत्कृष्ट गर्दा नमस्कार की चूलिका सम्यक्त्वरूपी सवर को कहते हैं । साधुओ को किया गया नमस्कार सर्वविरति संवर को प्रकट करता है, प्राचार्यों तथा उपाध्यायो को किया गया नमस्कार अप्रमाद सवर को व्यक्त करता है, वैसे ही अरिहन्त तथा सिद्धो को किया गया नमस्कार क्रमश अकषाय सवर एव मुख्यरूप से प्रयोग सवर को व्यक्त करता है। ये पांची नमस्कार पाँच प्रकार के सवरो को पुष्ट करते हैं । अतः परम मगलस्वरूप है। वे पाँचो प्रकार के प्रास्रवो के कट्टर विरोधी होने से उन्हें समूल नष्ट करते है । परमेष्ठि नमस्कार से दुष्कृतो की सर्वोत्कृष्ट गर्दी होती है तथा सुकृत मात्र की सर्वोत्कृष्ट अनुमोदना होती है। दुष्कृतमात्र को त्यक्त कर सुकृतमात्र के सेवन करने की प्रभु की आज्ञा है। इसलिए पचमगल की नित्य आराधना करने वाला प्रभु की आज्ञा का परम पाराधक होता है। प्रभु की आज्ञा छह जीवनिकायो की हितसम्पादिका है । अत. पचमगल का सेवन करने वाला छो जीवनिकायों का हितचिन्तक होता है। समस्त जीवराशि पर हित का परिणाम ही मित्रता है । अत. मैत्रीभाव धारण करने वाला परमात्मा की आज्ञा का पाराधक होता है ।
नमस्कार से माध्यस्थ्य परिणति नमस्कार इसलिए मन्त्र है कि वह छह जीवनिकायो के साथ गुप्त भाषण करता है, उनके हित की मन्त्रणा करता है तथा उनके द्वारा पुरुषार्थ को आमन्त्रण देता है । पचमंगल