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ऊँचे चढ़ने मे पालम्वनभूत होने वाले तत्त्वो के प्रति आदर के परिणाम स्वरूप सिद्धि मे वाधक विघ्नो का क्षय होता है तथा उस विघ्नक्षय से योगी पुरुप ध्यानादि के प्रारोहण से भ्रप्ट नही होते हैं। ___ आलम्वनो के आदर से होते प्रत्यक्ष लाभ को ही शास्त्रकार अरिहतादि अनुग्रह का कहते है।
स्वरूपबोध का कारण जिसका पालम्बन लेकर जीव आगे वढता है यदि उसके उपकार हृदय मे धारण नही करे तो फिर वह पतित हो जाता है । अर्थात् परार्थवृत्ति रूपी दुष्कृतगर्दा, कृतज्ञता गुण के पालन स्वरूप सुकृतानुमोदना तथा उन गुणो की सिद्धि को वरण किए हुए महापुरुषो की शरणागति, ये तीनो उपाय मिलकर जीव की मुक्तिगमन-योग्यता विकसित करते है तथा भवभ्रमरण की शक्ति का क्षय करते है। सची दुष्कृतगर्दा तथा सुकृतानुमोदन दुष्कृत रहित एव सुकृतवान् तत्त्वो की भक्ति के साथ सयुक्त ही होती है । अत. एकमात्र भक्ति को ही मुक्ति की दूती कहा गया है।
कृतज्ञतागुण सुकृत की अनुमोदना रूप है। परार्थवृत्ति दुष्कृतगर्हा रूप है। दुष्कृतगर्दा रूप परार्थवृत्ति तथा सुकृत को अनुमोदनारूप कृतज्ञताभाव से विशुद्ध अन्त करण मे शुद्ध प्रात्मतत्त्व का प्रतिविम्ब पडता है। शुद्ध प्रात्मतत्त्व अरिहन्त, सिद्ध, साधु तथा केवली कथित धर्म से अभिन्न स्वरूप वाला है।
श्री अरिहतादि चारो की शरणगमन मुक्ति का आनन्दप्रद कारण है । मुक्ति स्वय स्वरूपलाभरूप है। स्वरूप का बोध अरिहतादि चारो के अवलम्बन से होता है। अरिहतादि चार