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वे
पुरुष धन्य हैं, वन्दनीय हैं एवं उन पुरुषों ने तीनो लोकों को पवित्र किया है जिन्होने काम रूपी मल्ल को जीत लिया है ।
यही क्रोधरूपी मल्ल, लोभरूपी मल्ल, मोहरूपी मल्ल, मानरूपी मल्ल एव दूसरे भी कठोर दोषरूपी मल्ल जिन्होने जीत लिए हैं वे पुरुष भी धन्य, वद्य एव त्रैलोक्य पूज्य हैं, ऐसी भावना की जा सकती है । ये सभी भावनाएँ श्री नमस्कार मन्त्र के स्मरण के समय हो सकती है ।
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इष्ट का प्रसाद एवं पूर्णता की प्राप्ति
मन्त्र जप में नित्य नया अर्थ होता है, शब्द वे के वे ही रहते हैं एव अर्थ नित्य नूतन प्राप्त होता है । अन्न वही होता है पर भूख के प्रमारण मे हमे नित्य नया स्वाद अनुभव होता है । यही बात तृषातुर को जल मे एव प्रारण धारण करने वाले जीव को पवन मे अनुभव होती हैं ।
तृपा तथा क्षुधा की शान्ति एव प्रारण वो टिकाने की शक्ति जब तक जन्न, अन्त एव पवन मे स्थित है तब तक उनकी उपयोगिता एव नित्य नवीनता मानवी मन मे टिकी रहती है । नमो मन्त्र का जाप भी आत्मा की क्षुधा तथा तृप्रणा को शान्त करने वाला है एव आत्मा के वल-वीर्य को बढाने वाला है । इसी से उसकी उपयोगिता एव नित्य नूतनता स्वयमव अनुभव होती है ।
नमस्कार मन्त्र का जाप एक तरफ इप्ट का स्मरण, चिन्तन एव भावन करवाता है एव दूसरी ओर नित्य नूतन अर्थ की भावना जाग्रत करता है अत उस मन्त्र को मात्र ग्रन्न, जल एव पवन के तुत्य ही नहीं किन्तु पारसमणि, चिन्तामणि, कल्पवृक्ष एव काम कुम्भ से भी ज्यादा मूल्यवान् माना है ।