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(ल०) - शास्त्रसंदर्शितोपायस्तदतिक्रान्तगोचरः ।
शक्त्युद्रेकाद् विशेषेण सामर्थ्याख्योऽयमुत्तमः ॥ ३॥
(पं०)
अथ सामर्थ्ययोगलक्षणमाह 'शास्त्रसंदर्शितोपायः ' = सामान्येन शास्त्राभिहितोपायः, सामान्येन शास्त्रे तदभिधानात्, ‘तदतिक्रान्तगोचर; ' = शास्त्रातिक्रान्त विषयः, कुत इत्याह 'शक्त्युद्रेकात्' = शक्तिप्राबल्यात् 'विशेषेण' = न सामान्येन शास्त्रातिक्रान्तगोचरः, सामान्येन फलपर्यवसानत्वाच्छास्त्रस्य 'सामार्थ्याख्योऽयं' = सामर्थ्ययोगाभिधानोऽयं योगः, 'उत्तमः ' = सर्वप्रधानो, अक्षेपेण प्रधानफलकारणत्वादिति ॥ ३ ॥ (शास्त्रादेव सर्वमोक्षोपायज्ञाने आपत्ति : )
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(ल० ) — सिद्ध्याख्यपदसंप्राप्तिहेतुभेदा न तत्त्वतः । शास्त्रादेवावगम्यन्ते सर्वथैवेह योगिभिः ॥ ४ ॥ सर्वथा तत्परिच्छेदात्साक्षात्कारित्वयोगतः तत्सर्वज्ञत्वसं सिद्धेस्तदा सिद्धिपदासितः ॥ ५ ॥
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( पं०) एतत्समर्थनायै वाह 'सिद्धयाख्य पदसं प्राप्तिहेतुभेदा' इति == मोक्षाभिधानपदसंप्राप्तिकारणविशेषाः सम्यग्दर्शनादयः, किमित्याह 'न तत्त्वतो' परमार्थतः, 'शास्त्रादेव' आगमादेव अवगम्यन्ते । न चैवमपि शास्त्रवैयर्थ्यमित्याह 'सर्वथैवेह योगिभिः' सर्वैरेव प्रकारै:, 'इह' = लोके, साधुभि:; अनन्तभेदत्वात् तेषामिति ॥ ४ ॥ सर्वथा तत्परिच्छेदे शास्त्रादेवाभ्युपगम्यमाने दोषमाह 'सर्वथा' = सर्वैः प्रकारैः, अक्षेपफलसाधकत्वादिभिः 'तत्परिच्छेदात्' = शास्त्रादेव सिद्धयाख्यपदसंप्राप्तिहेतुभेदपरिच्छेदात् किमित्याह ‘साक्षात्कारित्वयोगतः’= केवलेनेव साक्षात्कारित्वयोगात् कारणात्, 'तत्सर्वज्ञत्वसंसिद्धेः' = श्रोतृयोगिसर्वज्ञत्वसंसिद्धेः, अधिकृतहेतुभेदानामन्येन सर्वथा परिच्छेदायोगात् । ततश्च 'तदा' = श्रवणकाले एव, 'सिद्धिपदातितः = मुक्तिपदाप्तेः, अयोगिकेवलित्वस्यापि शास्त्रादेवायोगिकेवलिस्वभावभवनेनावगतिप्रसङ्गाद्, अविषयेऽपि शास्त्रसामर्थ्याभ्युपगमे इत्थमपि शास्त्रसामर्थ्यप्रसङ्गात् ॥ ५ ॥
(सामर्थ्य-योग
शास्त्रसे सभी मोक्ष - उपाय ज्ञात नहीं होते हैं :
प्र० - सामर्थ्ययोगके सभी उपाय आगमसे ही क्या ज्ञात नहीं हो सकते ?
उ०- नहीं, क्यों कि इस लोकमें साधु-योगियों द्वारा मोक्ष नामक पदकी प्राप्ति के विशिष्ट उपाय सर्व प्रकारसे और परमार्थतः, अर्थात् सूक्ष्म एवं वास्तविक स्वरूपसे, मात्र आगमद्वारा ज्ञात नहीं हो सकते। कारण, उन उपायों के असंख्य प्रकार होते हैं। वे शास्त्रसे शब्दशः निर्दिष्ट नहीं हो सकते। फिर भी आगम निरर्थक यानी व्यर्थ नहीं है, क्यों कि ऐसी सामर्थ्ययोगकी अवस्था प्राप्त करनेके लिए जो शास्त्रयोग और उसके उपाय आवश्यक हैं, वे आगमोंसे ही ज्ञात हो सकते है ।
मोक्ष-प्राप्तिके समस्त उपायोंके प्रकारोंमें शीघ्र मोक्षफलसाधक प्रकार भी समाविष्ट हैं, वे अगर सिर्फ आगमोंसे ही जाने जाएँ तब तो आगमोंके द्वारा ही केवलज्ञानकी भाँति सर्व साक्षात्कारिता सिद्ध हो जायेगी । फलतः आगमश्रवण करनेवालोंको श्रवण करते ही सर्वज्ञता सिद्ध हो चुकेगी। अलबत्ता आगम नहीं सुननेवाले अन्यको तो प्रस्तुत उपायोंका ज्ञान समस्त प्रकारोंसे हो हीं नहीं सकता। अतः उसके लिए साक्षात्कारिता स्वरूप सर्वज्ञता प्राप्त करनेका कोई प्रसंग ही खड़ा नहीं होता। परन्तु आगमके श्रोता को तो श्रवणकालमें ही सर्वज्ञतापूर्वक चरम फल मोक्षपद तक की प्राप्ति अबाधित रहेगी। यहाँ मोक्षप्राप्ति की अबाधितता का भी कारण यह है कि शास्त्र विशेषरूपसे बता देगा कि अयोगिकेवलित्व जो मोक्षप्राप्ति का अन्तिम उपाय है यह इस प्रकारका है।
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