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जीव यानी असांव्यवहारिक जीव कहा जाता है। अब उनमें से निकल कर जो जो जीव पृथ्वीकायिकपन इत्यादि पाते हैं वे व्यवहारिक राशि के अर्थात् सांव्यवहारिक जीव कहे जाते हैं । व्यवहार राशि में भी जीव अनंत है।
जीवों के प्रकार :
जैन दर्शन जीवों के विभाग इस प्रकार बताते हैं :- सब से पहले तो जीवों के मुख्य दो प्रकार हैं । एक, संसारी; और दूसरा, मुक्त । मनुष्य, तिर्यंच इत्यादि गतिमें जो संसरण अर्थात् परिभ्रमण करते हैं, वे संसारी हैं, और जो संसार से मुक्त हो गए हैं, वे मुक्त याने मोक्ष के जीव हैं। संसारी जीवों के भी दो प्रकार हैं, बस और स्थावर। स्वेच्छा से हलन-चलन करने वाले जीव त्रस जीव हैं, और जो स्वयं अपने आप हलन चलन नहीं कर सकते हैं, वे स्थावर जीव कहे जाते हैं। इन स्थावर जीवों को पाँच इन्द्रियों में से मात्र एक स्पर्शेन्द्रिय वाला शरीर होता है। अतः इन जीवों को मात्र स्पर्श का अनुभव होता है, परन्तु स्वाद आदि का अनुभव नहीं होता है। जब, त्रस जीवों को रसनेन्द्रिय इत्यादि और भी इन्द्रिय प्राप्त होती है। अतः, त्रस जीव के ४ भेद होते हैं :
(१) द्वीन्द्रिय जिसे स्पर्शन और रसना, इस प्रकार दो ही इन्द्रियों वाला शरीर मिला है, उदाहरण के रूप में समुद्र में शंख, कौडी, जोंक, जलजंतु इत्यादि, वे वस्तुका रस भी समझ सकते हैं परन्तु गंध का अनुभव नहीं कर सकते हैं।
(२) त्रीन्द्रिय ये जीव है कि जिन्हें उक्त दो इन्द्रियों के उपरान्त तीसरी घ्राणेन्द्रिय वाला शरीर मिला होता है; उदाहरण के तौर पर चींटी, खटमल, मकोडे, जू, धान्यकीट इत्यादि असंख्य कीड़े जो चीज की गंध को भी परख सकते हैं, परन्तु चीज को दृष्टि से देख सकते नहीं है।
(३) चतुरिन्द्रिय जिन्हें उपर्युक्त तीनों इन्द्रियों के अलावा चक्षुइन्द्रिय वाला शरीर मिला है, जैसे कि मक्खी, भ्रमर, मच्छर, टिड्ड, बिंछू इत्यादि, वे देख सकते हैं, परन्तु सुन सकते नहीं हैं।
(४) पंचेन्द्रिय जीव, अर्थात् जिन्हें उक्त चार इन्द्रियों के उपरान्त पांचवी श्रोत्र-इन्द्रिय वाला शरीर मिला है, जैसे कि नारक तिर्यंच, मनुष्य और देव; ये जीव देखने के उपरान्त सुन भी सकते हैं। इन में मनुष्य और तिर्यंचों के दो-दो प्रकार हैं। संज्ञी और असंज्ञी। संज्ञी अर्थात् जिन्हें संज्ञा यानी विचारशक्ति वाला मन मिला हैं ; जब कि असंज्ञी को मन नहीं होता हैं।
स्थावर जीव कि जिन्हें एक मात्र स्पर्शनेन्द्रिय वाला शरीर और स्वेच्छासे न हिल सके ऐसी स्थिर स्थिति मिली है, इन जीवों के ५ भेद होते हैं। (१) पृथ्वीकायिक, यानी पृथ्वी ही जिसकी काया है। मिट्टी, पत्थर, धातु, नमक या, रत्न इत्यादि को ही शरीर के रूप में धारण करनेवाला जीव । (२)अप्कायिक जीव, अर्थात् पानी को ही शरीर के रूपमें धारण करने वाला जीव, जैसे कि वर्षा का पानी, कुएँ, नदी, समुद्र का पानी, बर्फ, कुहरा इत्यादि । (३) तेजस्कायिक अर्थात् अग्नि, विद्युत, दीप, चिनगारी इत्यादि शरीर है जिनके ऐसे जीव । (४) वायुकायिक जीव, यानी पवन, हवा, झंझावात इत्यादि जिसका शरीर है, वे जीव । (५) वनस्पतिकायिक जीव अर्थात् बीज, वृक्ष, पत्र, पुष्प, फल, धान्य, साग इत्यादि को ही शरीर रुप से धारण करनेवाले जीव। वनस्पतिकाय जीव के दो प्रकार है :- (१) एक एक जीव का एक एक शरीर हो वह प्रत्येक वनस्पतिकाय, और (२) जो अनंतानंत जीवों का एक हि साधारण शरीर हो, वह साधारण वनस्पतिकायिक जीव । जैसे कि कंदमूल, सेवाल, फूग इत्यादि।
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