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हैं। आश्रव के पांच प्रकार हैं— 1. मिथ्यात्व 2. अव्रत, 3. प्रमाद, 4. कषाय, 5. योग ।
102. मिथ्यात्व आश्रव किसे कहते हैं ?
उ.
103.
उ.
104.
उ.
तत्त्व के प्रति विपरीत श्रद्धा को मिथ्यात्व आश्रव कहते हैं।
अव्रत आश्रव किसे कहते हैं ?
अव्रत अर्थात् अत्याग भाव। इसका संबंध चारित्रमोह के परमाणुओं से है । अव्रत आश्रव देशव्रत एवं सर्वव्रत का बाधक है।
प्रमाद आश्रव किसे कहते हैं ?
अध्यात्म के प्रति होने वाले आन्तरिक अनुत्साह का नाम प्रमाद है। यह भी चारित्र मोह के परमाणुओं के उदय का प्रभाव है।
कषाय आश्रव किसे कहते हैं ?
105.
उ. जीव की क्रोध, मान, माया, लोभ रूप परिणति कषाय आश्रव है। आत्म प्रदेशों में जो कषायों की तप्तता है वह कषाय आश्रव है। यह भी चारित्रमोह के परमाणुओं के उदय से है।
106. योग आश्रव किसे कहते हैं ?
उ. मन, वचन और काया की प्रवृत्ति को योग कहते हैं। मिथ्यात्व, अव्रत आदि चारों आश्रव भाव रूप हैं पर योग आश्रव प्रवृत्ति रूप है। योग शुभ और अशुभ दोनों प्रकार का होता है। बाकी चारों आश्रव एकान्त पापकारी हैं। मन, वचन एवं काय प्रवृत्ति से एवं अन्तराय कर्म के क्षयोपशम, क्षय से आत्म प्रदेशों में जो क्रिया रूप परिणति होती है उससे कर्मबंध होना योग आश्रव है।
107.
आश्रव कर्म पुद्गलों को कैसे खींचता है ?
उ. जिस प्रकार दीपक में बाती तेल को खींचती है उसी प्रकार आश्रव कर्म पुद्गलों को खींचता है।
108. कर्म ग्रहण करने का सर्वाधिकार किस आश्रव को है ?
उ. कर्म पुद्गलों को ग्रहण करने का सर्वाधिकार योग आश्रव को प्राप्त है। पांच आश्रव में प्रथम चार आश्रव अव्यक्त हैं और योग आश्रव व्यक्त है।
109. कर्म बीज कौनसे हैं ?
1
उ. कर्म बीज दो हैं — राग और द्वेष 2, 31
1. कथा नं. 1
2. कथा नं. 2
3. कथा नं. 3
कर्म-दर्शन 29