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मिर्च आदि का लड्डु पित्त विकार को दूर करता है, उड़द का लड्डु पौष्टिकता देता है; इसी प्रकार कर्म पुद्गलों में अलग-अलग स्वभाव का पैदा होना जैसे ज्ञानावरणीय कर्म में ज्ञान को आवृत करने का, दर्शनावरणीय कर्म में दर्शन को आवृत्त करने का, वेदनीय में सुख-दुःख देने का, मोहनीय में सम्यक्त्व एवं चारित्र को रोकने का, आयु में नियत भव में रोक रखने का नाम में विविध आकृतियां रचने का, गोत्र में ऊंची-नीची अवस्थाएं बनाने का और अन्तराय में जीव की शक्ति को रोकने का स्वभाव पड़ जाना
प्रकृतिबंध कहलाता है। 267. स्थितिबंध किसे कहते हैं? उ. जैसे कोई मोदक दो-चार दिन तक टिकता है, कोई मोदक सप्ताह तक,
कोई पक्ष तक और कोई चार मास तक टिक सकता है, इसी प्रकार कोई कर्म दस हजार वर्ष तक आत्मा के साथ रहता है तो कोई पल्योपम और कोई सागरोपम तक आत्मा के साथ रहता है। भिन्न-भिन्न काल मर्यादा तक आत्मा के साथ रहना स्थितिबंध है। जब जीव के भाव अधिक संक्लिष्ट होते हैं तो स्थितिबंध भी अधिक होता है और जब भाव कम संक्लिष्ट होते हैं तो स्थितिबंध भी कम होता है। इसीलिए जितनी भी प्रशस्त प्रकृतियां हैं प्रायः सभी की स्थिति अप्रशस्त प्रकृतियों की स्थिति से कम है क्योंकि
उसका बंध प्रशस्त परिणाम वाले जीवों के ही होता है। 268. अनुभागबंध किसे कहते हैं? उ. जैसे कोई मोदक मधुर रस वाला होता है, कोई कटुक रस वाला होता है,
कोई चरपरा या कसैला होता है; इसी प्रकार कर्मदलिकों में शुभ या अशुभ, तीव्र या मंद रस का पैदा होना अनुभाग बंध कहलाता है। अशुभ कर्मों का रस नीम, करेला आदि के रस के समान कटुक और शुभ कर्मों का रस
इक्षुरस की तरह मीठा होता है। 269. तीव्र एवं मंद अनुभाग बंध कैसे होता है? उ. शुभ एवं अशुभ दोनों प्रकार की प्रकृतियों का तीव्र एवं मंद अनुभाग बंध
होता है। संक्लेश परिमाणों से अशुभ प्रकृतियों का तीव्र अनुभाग बंध एवं विशुद्ध परिणामों से शुभ प्रकृतियों का तीव्र अनुभाग बंध होता है। विशुद्ध भावों से अशुभ प्रकृतियों का अनुभाग बंध एवं संक्लेश परिणामों से शुभ
प्रकृतियों का मंद अनुभाग बंध होता है। 270. कर्म प्रकृतियों का रस किस प्रकार का होता है? उ. शुभ प्रकृतियों का रस क्षीर और खांड जैसा तथा अशुभ प्रकृतियों का रस __ घोषातकी (चिरायता) और नीम जैसा होता है।
62 कर्म-दर्शन